
”आमची मुंबई-2′ उपहार है एक ऐसे व्यक्ति राजेश विक्रांत की कलम का जो 1989 में मुंबई आए थे। घूमने- फिरने नहीं बल्कि भारतीय जीवन बीमा निगम में नौकरी करने और मुंबई को समझने तथा मुंबई की धड़कनों के साथ जीने के लिए। कुछ समय बाद उन्हें लगा कि सिर्फ नौकरी में मन लगने वाला नहीं है और इस शहर ने लिखने- पढ़ने के लिए भी बुलाया है। फिर सफर शुरू हुआ लेखक, पत्रकार और व्यंग्यकार के रूप में। मुंबई और देशभर की पत्रिकाओं में अपने 15000 से भी अधिक लेखों से समृद्ध करने वाले राजेश ने विषय जो भी चुने हों, जेहन में मुंबई ही रहती थी। घुमक्कड़ी और अनुभव की भट्टी में एक- दो बरस नहीं पूरे 22 बरस तक तपने के बाद 2012 में प्रेम शुक्ल की प्रेरणा से मुंबई पर एक सपने ने आकार लिया- “मुंबई माफिया: एक एनसाइक्लोपीडिया” यह किताब पत्रकार प्रभाकर पवार एक मराठी पुस्तक का हिंदी अनुवाद थी। इसके बाद 2016 में उन्होंने दोपहर का सामना में मुंबई के इतिहास पर आधारित एक स्तंभ शुरू किया आमची मुंबई। स्तंभ के आधार पर 2018 में उनकी किताब आई आमची मुंबई।

किताब को उम्मीद से ज्यादा प्रतिशत मिला तो हौसले को बल मिला और मुंबई पर उनका लेखन शुरू हो गया। 2022 में आचार्य पवन त्रिपाठी के साथ ‘आजादी की लड़ाई में मुंबई का योगदान’ आई तो 2024 में दीनदयाल मुरारका के साथ एक किताब आई ‘मुंबई और हिंदी’। इससे पहले 2015 में उनका व्यंग्य संग्रह आ गया था- बतरस। जिसे 2016-17 का महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी का आचार्य रामचंद्र शुक्ल व्यंग्य पुरस्कार भी मिल चुका था। 2024- 25 में इसी अकादमी ने उनके मुंबई पर किए गए प्रचुर लेखन के फल स्वरुप एक बड़ा सम्मान “जीवन गौरव” भी प्रदान किया।
कोई और होता तो यहां रुक जाता लेकिन राजेश विक्रांत ने उन सवालों के बारे में सोचा जो देश भर के पाठकों के मन में हमारी मुंबई को लेकर उमड़ते घुमड़ते रहते हैं। कई सालों के श्रम और शोध का परिणाम है आमची मुंबई- 2 जिससे परिचित होने के लिए कोई भी मुंबईकर उत्सुक रहेगा। मैं इसे शोध ग्रंथ कहता हूं क्योंकि 75 शीर्षकों में बंटी हुई इस किताब में वह सब कुछ है जो हम और आप भी जानना और समझना चाहते हैं। अद्भुत भी है और अकल्पनीय भी। कुल मिलाकर गागर में सागर है।
आमची मुंबई-2 के लेखों के कुछ शीर्षक देखिए- सात दीपों का शहर मुंबई, मुंबई का नामकरण, मुंबई की ऐतिहासिक धरोहर, मुंबई का इतिहास, मुंबई के गुमनाम शिल्पकार, मुंबईकरों के वैश्विक कीर्तिमान ,मुंबई के साहित्यकार/ कवि मुंबई के साहित्यिक गतिविधियां और उत्सव तथा मुंबई की जनसंख्या।
424 पृष्ठों में उपलब्ध सामग्री खुद बोल उठाती है कि शोधकर्ता ने कितनी मेहनत की होगी और कितना समय लगाया होगा। मुंबई में मैं 50 वर्षों से हूं लेकिन मुंबई को लेकर मेरे भी कई सवाल थे जो अनुत्तरित थे। इस एक ही किताब में सारे जवाब मिल गए और दिल से दुआ निकली। राजेश विक्रांत बहुत सरल स्वभाव के अंतर्मुखी मित्र हैं। 35 वर्षों के अपने लेखकीय किया जीवन में वह उन सभी बदनामिया से बचे रहे जो अक्सर उनके हमपेशा लोगों के हिस्से में गाहे-बगाहे आ जाती है। सतत और सही लेखन उनका शौक भी है और गुण भी है। और शोक जब किताब में बदलता है तो आमची मुंबई-2 नाम की उसे किताब का जन्म होता है जिसे छापकर प्रकाशक भारत पब्लिकेशन भी स्वयं को धन्य मानता है। हम सभी जानते हैं कि एक विषय विशेष पर लिखने के लिए मूड से लेकर समय और शोध का क्या महत्व होता है। ऐसे में 75 शीर्षकों के साथ न्याय करना और हर पृष्ठ को पठनीय और जानकारी पूर्ण बनाना किसी लगनशील और अनुभवी कलम के ही बस की बात थी।
एक मुश्किल और सार्थक काम राजेश विक्रांत ने किया है। अब हम सबका एक कर्तव्य बनता है कि शोध ग्रंथ के साक्षी भी बनें और इसे पढ़कर लेखक को अपनी प्रतिक्रिया भी दें। क्योंकि उनकी कलम की यात्रा अभी जारी है और हमें आगे भी कुछ चमत्कारों की प्रतीक्षा है बंधु राजेश विक्रांत को इस अद्भुत और महत्वपूर्ण ग्रंथावली के लिए बहुत-बहुत बधाई।