● संकलन: सूर्यकांत उपाध्याय

दो संन्यासी एक आश्रम से दूसरे आश्रम जा रहे थे। एक 25 वर्ष का और दूसरा 65 वर्ष का। रास्ते में नदी थी। वहां एक युवती खड़ी थी। युवती ने बड़े संन्यासी से नदी पार करने में सहायता मांगी लेकिन बड़े संन्यासी ने अपने ब्रह्मचर्य के संकल्प के कारण मदद से इनकार कर दिया। लेकिन छोटे संन्यासी ने उस महिला की मदद की और उसे सुरक्षित रूप से नदी पार करवा दिया।
आगे बढ़ते हुए बड़े संन्यासी ने छोटे संन्यासी से क्रोधित होकर पूछा कि उसने अपने ब्रह्मचर्य के नियम का अनुपालन क्यों नहीं किया?
छोटे संन्यासी ने उत्तर दिया कि ब्रह्मचर्य का असली स्थान मन में होता है, न कि किसी के संपर्क या स्पर्श में। यदि मैं उसकी मदद न करता तो हो सकता था कि वह युवती नदी में डूब जाती। ये भी तो पाप होता। छोटे संन्यासी ने बताया कि उसने महिला को केवल एक असहाय मानव के रूप में देखा और मदद की।
बड़े संन्यासी, छोटे संन्यासी के तर्क से संतुष्ट हुए। दोनों मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।