● सत्यम
वे जिन्होंने बिलकुल व्यक्तिगत और परिवार केंद्रित रहे उत्सव को सार्वजनिक रूप दिया। क्यों दिया सार्वजनिक रूप? क्योंकि हमारी भारत माता ब्रिटिश गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थी और समय की मांग थी कि समाज को झकझोर कर जगाया जाय। समाज की मानसिकता को बदलते हुए उसे राष्ट्रदेव की आराधना के लिए प्रवृत्त किया जाय।
२३ जुलाई १८५६ को जन्मे बालगंगाधर तिलक जी ने महाराष्ट्र में मनाई जानेवाली गणेश चतुर्थी पर्व को सार्वजनिक रूप से मनाने का चलन आरंभ किया और गणेशजी की आराधना करनेवाला समाज धीरे-धीरे जागने लगा, अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध रोष प्रकट करने लगा। उसने शस्त्र धारण करने का प्रण लिया। व्यापक जनसमर्थन प्राप्त करनेवाले तिलक को इसीलिए लोकमान्य की उपाधि मिली।

उनके ‘केसरी’ और ‘मराठा’ समाचारपत्रों ने विद्रोह की चिंगारी को भयंकर हवा दी। उनके धारदार लेखों ने पूरे देश के मानस को झकझोर कर जगाया और जगाया अनगिनत क्रांतिकारियों को।
चाहे स्वदेशी का जागरण हो, शिक्षा हो या सामाजिक बुराइयों से लड़ने का संदेश हो, लोकमान्य तिलक ने समाज के हर उस विषय को आवाज़ देने का प्रयास किया जो समाज की सेहत के लिए महत्वपूर्ण थे।
आज जब हम २०२५ में गणेशोत्सव मनाने जा रहे हैं तब इस महान उत्सव के सार्वजनिक स्वरूप के पीछे के उद्देश्य को भी हमेशा याद रखना चाहिए। आज हमारे देश में भले ही अंग्रेज नहीं हैं, लेकिन अंग्रेजी मानसिकता और अंग्रेजी प्रभुत्व, अंग्रेजियत की गुलामी में जी रहे लोग भारतीयता को तुच्छ और कम दर्जे का समझने में पीछे नहीं हैं।
स्वदेशी, स्वभाषा, स्वतंत्रता और स्वराज का जो मंत्र तिलक जी ने दिया उसे बार बार जाग्रत करने का और राष्ट्र रक्षा में योगदान देने का ये हमारे लिए सुनहरा मौका है।