● सूर्यकांत उपाध्याय

देवर्षि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त माने जाते थे। वे निरंतर हरि-नाम का गुणगान करते और तीनों लोकों में भ्रमण कर भगवान की महिमा का प्रचार करते रहते थे।
एक बार उनके मन में यह भाव उठने लगा कि संसार में उनसे बड़ा कोई भक्त नहीं है। वे सोचने लगे- “मैं हर क्षण हरि-नाम जपता हूँ, दिन-रात प्रभु का गुणगान करता हूँ। फिर मुझसे बड़ा भक्त और कौन हो सकता है?”
लेकिन साथ ही उनके मन में यह संदेह भी हुआ कि क्या भगवान विष्णु भी उन्हें ही अपना सबसे बड़ा भक्त मानते हैं?
यह विचार मन में आते ही वे क्षीरसागर पहुँचे और भगवान विष्णु को प्रणाम किया। भगवान विष्णु मुस्कुराए और बोले, “आओ नारद! कहो, कैसे आना हुआ?” नारद ने विनम्रता से निवेदन किया, “प्रभु, मैं निरंतर आपका स्मरण करता हूँ। कृपया बताइए, क्या इस संसार में मुझसे बड़ा भी कोई भक्त है?”
विष्णु जी नारद के मन का भाव समझ गए। वे जानते थे कि नारद को अपनी भक्ति पर अभिमान हो गया है। उन्होंने कहा, “इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए तुम्हें मेरे साथ मृत्यु लोक चलना होगा।” दोनों धरती पर आए और किसान का वेश धारण कर एक गाँव पहुँचे। भगवान विष्णु बोले, “नारद, मेरा एक सच्चा भक्त यहीं इस कुटिया में रहता है।”
कुटिया के बाहर एक किसान गाय बाँध रहा था और उसके मुख से सहज भाव से “हरि-हरि गोविन्द” की ध्वनि निकल रही थी। दोनों अतिथि बनकर उसके पास पहुँचे और रात में आश्रय माँगा। किसान ने प्रसन्नता से स्वागत किया और कहा, “भगवान ने मुझे सेवा का अवसर दिया है, यही सबसे बड़ी कृपा है।”
कुटिया में भोजन बहुत कम था, फिर भी किसान और उसकी पत्नी ने बच्चों का हिस्सा भी अतिथियों को खिला दिया।
भूखे बच्चे माँ से शिकायत करने लगे, पर किसान ने समझाया, “बेटा, अतिथि को भोजन कराना स्वयं भगवान को भोग लगाने के समान है।”
रात भर नारद और विष्णु यह सब देखते रहे। अगली सुबह किसान फिर खेत की ओर जाते समय हरि-नाम जपता रहा।नारद ने विष्णु से कहा, “प्रभु! यह किसान तो दिन में बस दो-चार बार ही आपका नाम लेता है, जबकि मैं हर समय ध्यान करता हूँ। फिर भी आप इसे महान भक्त क्यों कहते हैं?”
भगवान मुस्कुराए और बोले, “नारद, कारण अभी जान जाओगे।”
उन्होंने एक कलश तेल से भरकर नारद के सिर पर रख दिया और कहा ₹, “इसे बिना गिराए उस पहाड़ी तक ले जाओ और लौट आओ। ध्यान रहे, एक बूँद भी नीचे न गिरे।”
नारद ने कलश सिर पर रखकर यात्रा पूरी की। लौटने पर विष्णु ने पूछा, “बताओ, इस दौरान तुमने कितनी बार मेरा स्मरण किया?”
नारद झेंपते हुए बोले,“प्रभु! एक बार भी नहीं कर पाया, क्योंकि सारा ध्यान तो कलश और तेल पर था।”
विष्णु बोले, “यही समझो, नारद! यह किसान दिनभर कठिन परिश्रम करता है, परिवार की जिम्मेदारियों में उलझा रहता है, फिर भी सुबह-शाम और समय मिलने पर मेरा स्मरण करता है।
संसार के झंझटों में रहते हुए भी जो भक्त मुझे याद रखे, वही सबसे बड़ा भक्त है।”
नारद का अभिमान चूर हो गया। उन्होंने विष्णु के चरणों में गिरकर कहा, “प्रभु, अब समझ गया! सच्ची भक्ति वही है, जो सांसारिक कार्यों के बीच भी आपके स्मरण को बनाए रखे।”

बहुत सुंदर प्रसंग
बहुत सुंदर