■ क्या है महत्व और मुहूर्त?
■ काशी में देवता मनाते हैं दिवाली

● नई दिल्ली।
कार्तिक पूर्णिमा को हिन्दू पंचांग की सर्वाधिक पवित्र तिथियों में गिना जाता है। इस वर्ष यह पर्व आज बुधवार को मनाया जाएगा। श्रद्धालु सुबह ब्रह्ममुहूर्त में नदियों और सरोवरों में स्नान कर दान-पुण्य करेंगे तथा देवालयों में दीप प्रज्वलित कर देव दीपावली का उत्सव मनाएंगे। मान्यता है कि इस दिन स्नान और दान करने वाले भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। कहा जाता है कि देव दीपावली के अवसर पर देवी-देवता स्वयं स्वर्गलोक से धरती पर उतरकर दीपों से पृथ्वी को आलोकित करते हैं।

जानकारों के अनुसार पूर्णिमा तिथि मंगलवार रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर बुधवार शाम 6:49 बजे तक रहेगी। उदयातिथि को मान्यता देते हुए कार्तिक पूर्णिमा का पर्व बुधवार को मनाया जाएगा। इसी दिन स्नान, दान और सामा-चकेवा का विसर्जन शुभ माना गया है।
त्रिपुरारी पूर्णिमा का महत्व
पंडितों का कहना है कि देव दीपावली वस्तुतः देवताओं की दीपावली है। पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने सम्पूर्ण स्वर्गलोक को दीपों से सजाया, जो आगे चलकर देव दीपावली कहलाया। इसीलिए इस तिथि को त्रिपुरी पूर्णिमा या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।

काशी के घाटों पर उतरते हैं देवता
मान्यतानुसार देव दीपावली की संध्या पर देवता स्वयं काशी के घाटों पर आते हैं और गंगा के तट पर दीप जलाकर अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं। बुधवार को पूर्णिमा तिथि शाम 6:49 बजे तक रहेगी। स्नान-दान का शुभ मुहूर्त प्रातः 4:52 से 5:45 बजे तक, फिर 7:15 से 9:15 बजे तक तथा 10:35 से दोपहर 12 बजे तक रहेगा।
