
भगवान शिव की पूजा में परंपरा और प्रतीकों का विशेष महत्व है। इन्हीं में एक है शिवलिंग की अर्द्ध-परिक्रमा, जिसे पूर्ण परिक्रमा की बजाय चंद्राकार परिक्रमा भी कहा जाता है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि शिव की पूर्ण प्रदक्षिणा क्यों नहीं की जाती?
क्या है अर्द्ध परिक्रमा का विधान?
शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग के चारों ओर पूरी परिक्रमा नहीं की जाती अपितु आधी परिक्रमा करके वहीं से वापस लौटा जाता है। इस प्रकार की परिक्रमा को अर्ध चंद्राकार प्रदक्षिणा कहा गया है। यह परिक्रमा चंद्र के आकार जैसी होती है, जिसमें साधक जलधारी (सोमसूत्र) को पार नहीं करता।
क्या होता है सोमसूत्र?
सोमसूत्र वह भाग होता है जहां शिवलिंग पर अर्पित जल बाहर निकलता है। इसे निर्मली या जलाधारी भी कहा जाता है। मान्यता है कि यह भाग अत्यंत पवित्र होता है और इसमें शिव शक्ति प्रवाहित होती है।
कहा गया है-
शिवस्य अर्ध प्रदक्षिणा सोमसूत्र न लंघयेत्- अर्थात शिव की प्रदक्षिणा करते समय सोमसूत्र को लांघना वर्जित है।
क्यों नहीं लांघा जाता सोमसूत्र?
- सोमसूत्र को पार करना अशुभ माना गया है क्योंकि
- इससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
- पैर फैलाने से शरीर की पांच आंतरिक वायुएं (विशेषतः देवदत्त और धनंजय वायु) असंतुलित होती हैं।
- इससे मन, शरीर और ऊर्जा प्रवाह पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कैसे करें सही परिक्रमा?
- परिक्रमा बाईं ओर से शुरू करें।
- शिवलिंग के पीछे से घूमते हुए जलधारी के ठीक पहले वाले स्थान तक पहुंचें।
- वहां से वापस लौटें और दूसरी दिशा से आते हुए उसी जलधारी के दूसरी ओर पहुंचकर परिक्रमा पूर्ण करें। यह प्रक्रिया चंद्रमा की अर्धाकार गति के समान होती है, इसलिए इसे अर्धचंद्र प्रदक्षिणा कहा जाता है।
अर्द्ध-परिक्रमा से शिव की कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है। शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है।मन में शांति और श्रद्धा बनी रहती है।भगवान शिव की परिक्रमा में न केवल भक्ति है बल्कि विज्ञान भी छिपा है। सोमसूत्र को न लांघना केवल एक धार्मिक नियम नहीं है। यह ऊर्जा के संतुलन को बनाए रखने का एक गूढ़ रहस्य है। इसलिए शिवभक्तों को इस परंपरा को श्रद्धा और समझ के साथ निभाना चाहिए।
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