
भाद्रपद शुक्ल एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। इसे पद्मा, जयंती और वामन एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि यह व्रत पापों का नाश, पुण्य, मोक्ष और वाजपेय यज्ञ के तुल्य फल प्रदान करता है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में करवट बदलते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तिनी’ कहा जाता है।
क्या है व्रत कथा?
त्रेतायुग में दैत्यराज बलि ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर बलि के यज्ञ में पहुँचे। उन्होंने तीन पग भूमि माँगी, दो पग में आकाश और धरती नाप ली और तीसरे पग पर बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया। तब भगवान ने उसे पाताल भेजा और वचन दिया कि वे सदैव उसके निकट रहेंगे। इसी दिन से वामन पूजा का विशेष महत्व है।
पूजन विधि व फल
इस दिन प्रातः स्नान कर संकल्प लेकर भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करें। धूप, दीप, पुष्प, फल व नैवेद्य अर्पित करें, हरिनाम संकीर्तन व रात्रि जागरण करें। कमल से पूजन और दीपदान विशेष फलदायी माना जाता है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ या श्रवण करें। पीले कपड़े पहनें। ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का मानसिक जप करें।
यह व्रत सभी पापों का नाश करता है, मनोकामनाएँ पूरी करता है और अंततः भक्त को मोक्ष प्रदान करता है।
