
● सत्यम
आज हिंदी दिवस है। मुंबइया भाषा में कहूं तो आज अपुन का हिंदी डे है। हिंदी की यही खूबी है। यह जहां जाती है, उसी रंग में ढल जाती है। मुंबई में मुंबइया हिंदी होती है तो दिल्ली और चंडीगढ़ में इसका अंदाज़ कुछ अलग होता है। दक्षिण भारत यानी साउथ इंडिया में हिंदी दक्खिनी हो जाती है तो हैदराबाद की हिंदी का अपना ही मिज़ाज है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी बहुत सरल है, बोलने में भी और समझने में भी। कोई भी इसे अपने अंदाज़ में बोल सकता है और किसी को भी अपना बना सकता है, दोस्ती कर सकता है। हिंदी हमारे देश की राजभाषा है तो केवल इसीलिए नहीं कि वह देश के एक बड़े इलाके में बोली जाती है बल्कि इसलिए भी कि हिंदी आसान है और हर किसी को अपनी-सी लगती है। वह सारे देश को जोड़ती है, फिर चाहे हिंदी फिल्में हों, हिंदी गाने हों या बोलचाल के ज़रिए भावनाएँ पहुँचाने की बात हो, हिंदी पूरे भारत को एक सूत्र में बाँध सकती है।
हिंदी के बहाने आज सभी भारतीय भाषाओं के मूल भाव की चर्चा करना अधिक उपयुक्त होगा। हमारे देश की सारी भाषाएँ अत्यंत वैज्ञानिक हैं। हम जो लिखते हैं, वही पढ़ते हैं। हमारी भाषाओं में कोई अक्षर साइलेंट नहीं होता। जो लिखा जाता है, वही बोला और पढ़ा जाता है। भाषा केवल विचार व्यक्त करने का माध्यम नहीं होती बल्कि उसके साथ एक पूरी संस्कृति भी चलती है।
जब हम किसी तीसरे व्यक्ति की बात कर रहे हों और अचानक वही व्यक्ति सामने आ जाए, तो हम कहते हैं, “अरे भाई, अभी हम आपकी ही बात कर रहे थे। आपकी उम्र सौ साल की है।” लेकिन इसी बात पर अंग्रेज़ी में कहते हैं -Think of the devil and the devil is here. अचानक आने वाला मेहमान अंग्रेज़ी में “शैतान” हो जाता है। इसी तरह ‘पतिव्रता’ शब्द का अंग्रेज़ी में कोई सटीक अनुवाद नहीं है। जहाँ पतिव्रता की संकल्पना ही न हो, वहाँ उसके लिए शब्द भला कहाँ से मिलेगा!
हमारे यहाँ पुण्य और पाप दोनों की संकल्पना है। लेकिन अंग्रेज़ी में केवल Sin (पाप) है, पुण्य का कोई सटीक शब्द नहीं है। “शुभ-लाभ” का विचार हमारी मातृभाषाएँ ही देती हैं। हम शिवलिंग के फूल में ‘शिव’ के दर्शन करते हैं, जबकि अंग्रेज़ी में उसी फूल को Cannon Ball यानी तोप का गोला कहा जाता है। किसी नायिका की चाल को हम हिरनी की चाल, मोरनी की चाल या हथिनी की चाल कहते हैं, जबकि अंग्रेज़ी में इसे Cat Walk कहते हैं। बिल्ली कितनी धूर्त प्राणी होती है, यह सब जानते हैं।
हम लोग जब चेक लिखते हैं, तो उस पर लिखते हैं-“Two Thousand Only”, लेकिन अपनी भाषाओं-हिंदी, गुजराती या मराठी-में हम लिखते थे-“दो हजार पूरा” / “बे हजार पूरा” / “दोन हजार पूरे”। ‘पूरा’ में संतोष का भाव है जबकि Only में असंतोष झलकता है।
कुल मिलाकर कहना यही है कि हमें अपने ‘स्व’ को अपनाना चाहिए। अपने स्वत्व को जीना चाहिए। मेरी माँ गरीब हो सकती है पर गरीबी के कारण मैं अपनी माँ को नकार कर किसी और अमीर की माँ को अपनी माँ नहीं बना सकता। चाहे जैसी भी हो, वह मेरी माँ है और उसका ध्यान रखना मेरी ज़िम्मेदारी है। हम किसी दाई को अपनी ‘आई’ नहीं बना सकते। इसी कारण हिंदी के साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा है, “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।”
- लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। यह लेख इनके निजी विचारों व अध्ययन पर आधारित है।