● सेविंग अकाउंट, ईएमआई और निवेश

■ भरतकुमार सोलंकी, वित्त विशेषज्ञ
आजकल हर व्यक्ति के जीवन में ईएमआई और एसआईपी एक सामान्य हिस्सा बन चुके हैं। घर, गाड़ी या बिज़नेस के लोन की ईएमआई हो या फिर भविष्य के लिए किया गया एसआईपी निवेश, ये दोनों ही समय पर कटने चाहिए, वरना परिणाम गंभीर हो सकते हैं।
लेकिन असल समस्या कहाँ आती है?
कई लोग व्यापार या नौकरी की व्यस्तता में अपने सेविंग अकाउंट में समय पर पैसे ट्रांसफर करना भूल जाते हैं। अक्सर महीने की आखिरी तारीख बीत जाती है या एक-दो दिन आगे-पीछे हो जाता है। यह मानव स्वभाव है, लेकिन इसके कारण किस्त रिजेक्ट हो जाती है। नतीजा? बैंक पेनल्टी चार्ज लगा देता है, आपका सिबिल रिकॉर्ड खराब होता है और निवेश का अनुशासन भी टूट जाता हैं।
इस स्थिति से बचने का सीधा उपाय है, अपने सेविंग अकाउंट में ‘तीन महीने की न्यूनतम राशि’ पहले से सुरक्षित रखना।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए आपकी ईएमआई और एसआईपी मिलाकर हर महीने ₹50,000 कटते हैं। तो आपको अपने सेविंग अकाउंट में कम से कम ₹1,50,000 तीन महीने की किस्तों के लिए और बैंक की न्यूनतम बैलेंस शर्त मानकर ₹10,000 अतिरिक्त रखना चाहिए। यानी कुल ₹1,60,000। ऐसा करने से न आपकी ईएमआई रुकेगी, न एसआईपी मिस होगी, न बैंक चार्ज लगाएगा और न ही आपका सिबिल रिकॉर्ड प्रभावित होगा। उल्टा, आप एक अनुशासित निवेशक बनते जाएंगे।
अब सवाल उठता है कि कौन सा बैंक चुनें?
जो लोग अपने आप को आर्थिक रूप से मजबूत और अमीर बनाना चाहते हैं, उन्हें ऐसी बैंक में अपना बचत खाता रखना चाहिए, जहाँ न्यूनतम बैलेंस की शर्त ऊँची हो। सोचिए, एक बैंक शून्य बैलेंस पर खाता खोल देता है, दूसरा ₹10,000 का न्यूनतम बैलेंस मांगता है और तीसरा ₹25,000। अब अगर आपका लक्ष्य सिर्फ खाता खोलना है तो शायद पहला विकल्प सुविधाजनक लगे। लेकिन अगर आपका लक्ष्य अमीर बनने की सोच और आदत विकसित करना है तो आपको तीसरा विकल्प चुनना चाहिए। क्योंकि जिस खाते में ₹25,000 न्यूनतम बैलेंस रखना पड़ता है, वहाँ आप मजबूरी में ही सही, लेकिन बचत करना सीख जाते हैं। यही अनुशासन धीरे-धीरे आपकी संपन्नता की नींव बनता है।
यह वैसा ही है जैसे अच्छी संगत सही आदतें डालती है। ‘जैसी संगत वैसी रंगत’; आर्थिक मामलों में यह कहावत सौ फीसदी लागू होती है।