
मुंबई। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रामकथा वाचिका मानस मुक्ता यशुमति जी ने विलेपार्ले पश्चिम स्थित संन्यास आश्रम में रामकथा के चतुर्थ सत्र में सीता-राम विवाह प्रसंग का भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भारत में जन्म लेना सौभाग्य की बात है। यह सुश्रुत का देश है, जिसने संसार को शल्य चिकित्सा का ज्ञान दिया। रामकथा केवल व्यक्ति ही नहीं, परिवार, समाज और राष्ट्र के मंगल का साधन है।
जनकपुर का धनुषयज्ञ प्रसंग आतंकवादियों के लिए यह संदेश है कि आतंक के विनाश हेतु पुरुषोत्तम का अवतार हो चुका है। यशुमति जी ने बताया कि बेटियाँ पूरे समाज की होती हैं, इसलिए उनके विवाह में धरती माँ स्वयं योग्य वर का चयन चाहती थीं। इसी कारण भारी धनुष को भूमिजा सीता के विवाह हेतु धरती ने संभाला था। उन्होंने तुलसीदास जी की पंक्ति “तेहिं क्षण राम मध्य धनु तोरा” का उल्लेख करते हुए कहा कि राम ही वह शक्ति हैं, जिन्होंने असंभव को संभव किया।
उन्होंने कहा कि विवाह में कन्यादान सबसे बड़ा दान है। कन्यादान करने वाला महान दानी और उसे स्वीकारने वाला योग्य याचक होता है। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि विवाह में दहेज न देना और न लेना ही श्रेष्ठ है, परंतु दहेज माँगना सबसे बड़ा पाप और कुसंस्कार है।
कार्यक्रम में प्रयागराज नारायण आश्रम से पधारीं संत गोपी और संत लक्ष्मी सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे। सद्गुरु फाउंडेशन ट्रस्ट के चेयरमैन गणेश अग्रवाल, ममता अग्रवाल, राजेश पोद्दार, अंशुल वर्मा, हरिओम मंडल की मंजू शुक्ला, भूमिका वर्मा, अनुसूया, कैलाश शर्मा, भजन गायिका सरला मीरचंदानी तथा अन्य भक्तों ने भी कथा का श्रवण लाभ लिया।
यह रामकथा सद्गुरु नारायण महाप्रभु भक्त मंडल के तत्वावधान में प्रतिदिन संध्या 5 से 7 बजे तक चल रही है और 1 अक्टूबर को सम्पन्न होगी।
