
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के विजयादशमी समारोह में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देश की वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि यह अवसर केवल उत्सव का नहीं, बल्कि आत्ममंथन का भी है। इस वर्ष भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संघ के विजयादशमी समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे।

भागवत ने भाषण की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से की, जिसमें 26 श्रद्धालुओं की मौत हुई। उन्होंने कहा कि यह घटना भारतीय समाज की एकजुटता और नेतृत्व की दृढ़ता दिखाती है, साथ ही यह भी स्पष्ट करती है कि वैश्विक स्तर पर वास्तव में कौन हमारे साथ खड़ा है।
आंतरिक सुरक्षा को लेकर उन्होंने कहा कि नक्सलवाद अब काफी हद तक नियंत्रण में है, लेकिन प्रभावित क्षेत्रों में न्याय और विकास सुनिश्चित न होने पर यह समस्या फिर उभर सकती है। भागवत ने आर्थिक असमानता पर भी चिंता जताई और कहा कि अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई देश के लिए गंभीर चुनौती है। उन्होंने स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर जोर दिया।

पर्यावरणीय संकट के मुद्दे पर भागवत ने हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन, अनियमित बारिश और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसी आपदाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि हिमालय केवल भारत के लिए ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया के जल संसाधन और सुरक्षा का आधार है।
भागवत ने पड़ोसी देशों की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की। नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में हिंसक विरोधों के कारण सरकारें बदलीं, लेकिन उन्होंने कहा कि स्थायी बदलाव केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही संभव है। उन्होंने पड़ोसी देशों को परिवार का हिस्सा बताते हुए कहा कि उनकी स्थिरता और समृद्धि भारत के लिए भी अहम है।
