● ठाणे स्थित येऊर पहाड़ियों पर बहती है भक्ति की धारा

परम् तपस्वी सर्वज्ञ गुरुदेव परम पूजनीय स्वानंद बाबा के चरण रज से पावन हुई ठाणे-येऊर पहाड़ी की तपोस्थली पर स्थित है स्वानंद बाबा का समाधि मंदिर। मां गायत्री के परम आराधक स्वानंद बाबा की तपस्या जितनी गूढ़ रही और उतनी ही तेजोमय भी। आडंबर करनेवाले भगवाधारी साधुओं पर बाबा अकसर कुपित हो जाते और उन्हें भी सही राह पर ले आते थे। सिंधु समान स्वानंद बाबा की लीला व व्यक्तित्व के समक्ष यह लेख एक बिंदु भी साबित नहीं हो पाएगा किंतु कुछ उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं को अवश्य जानना चाहिए।

श्री स्वानंद बाबा का जन्म जौनपुर के सिंगरामऊ के पास स्थित ग्राम भुला में तिथि (प्रदोष संवत १९७५) सन १९१८ में हुआ था। उनका नाम राजनारायण मिश्र था। अपने गृहस्थ जीवन के दायित्वों को पूर्ण कर १९६३ में आप परिवार को त्यागकर परम सत्य की खोज में देशाटन पर निकले। लगभग एक दशक तक बाबा ने देशाटन किया और इस दौरान कई मठों, तीर्थों, कथाओं, सत्संगों का अनुभव प्राप्त करते किया। ७० के दशक में बाबा ने नासिक स्थित रामकुंड तीर्थ में साधना शुरू की और अजगर बाबा की समाधि को अपना बसेरा बनाया। साधनारत बाबा की यहां कुंडलिनी जाग्रत हुई और उन्होंने परम पूज्य गीतानंद सरस्वती जी से मित्रवत गुरुदीक्षा ली। गूरु आज्ञा प्राप्त कर बाबा घार तपस्या के लिए ठाणे (महाराष्ट्र) के जव्हार पहुंचे। बाबा ने अनजान क्षेत्र अनजानी भाषा के कारण चुना ताकि उनकी साधना में कोई बाधा न हो। ठाणे-पश्चिम स्थित येऊर पहाड़ पर १९८७ में तपस्या करने आए। वहां पर्णकुटी तैयार कर बाबा ने साधारण ग्रामीण वेशभूषा और न्यूनतम साधन सामग्री में अपनी साधना जारी रखी। इसी दौरान शेर से गाय की रक्षा, मृत्युतुल्य पीड़ा से कराहते आदिवासी को दृष्टिमात्र से स्वस्थ कर देने, संतान प्राप्ति के लिए एक पत्रकार द्वारा सपत्नीक याचना करने पर उसकी मनोकामना पूर्ति, सर्पदंश से मृत आदिवासी सेवक के निष्प्राण पुत्र को चेतना प्रदान करने जैसी घटनाओं से बाबा की कीर्ति फैलने लगी हालांकि बाबा इन घटनाओं की चर्चा से भी बचते थे।

परम् पूजनीय स्वानंद बाबा ने श्री प्रेम शुक्ल और श्रीमती शांति प्रेम शुक्ल को दीक्षा देकर अध्यात्म संबंधी मार्गदर्शन किया। पंडित दुर्गाप्रसाद पाठक परिवार सहित श्री जाकिर अहमद, वरिष्ठ पत्रकार श्रीनारायण तिवारी, आरटीआई एक्टिविस्ट श्री अनिल गलगली, श्री बबलू पांडेय, श्री प्रेम मेघनानी, श्री गुड्डू पाठक, श्री संतोष पाठक, श्री धीरज मिश्र और श्री संतोष गुप्ता सहित तमाम भक्त स्वानंद आश्रम में निःस्वार्थ भाव से सेवा में लीन रहते हैं। स्वानंद बाबा महाशिवरात्रि संवत २०६० (१७ फरवरी २००४) को समाधिस्थ हुए।
अपनी भौतिक इहलीला के अंतिम चरण में बाबा जी के मार्गदर्शन में अटपटेश्वर महादेव मंदिर और बजरंगबली के मंदिर का निर्माण किया गया। मां गायत्री स्वानंद बाबा की इष्ट थीं। मां गायत्री मंदिर का भूमिपूजन संवत २०६१ की चैत्र नवरात्रि में हो चुका है। आपका समाधि पर्व महाशिवरात्रि के दिन है।

प्रख्यात कवि कमलेश पांडेय ‘तरुण’ स्वानंद बाबा धाम के दृश्य को इन शब्दों में प्रस्तुत करते हैं-
यहीं काशी, यहीं काबा, यहीं मथुरा है, वृंदावन।
यहीं मां शक्ति की सेवा, करें स्वानंद येऊर वन।।
अटपेटश्वर की ये नगरी यहां हनुमान बसते हैं।
यहां मत्था टिकाने से स्वयं धुल जाता है अंतर्मन।।
जिन खोजा तिन पाइयां की तर्ज पर जो धर्म की राह पर चलता है वह पाता है और जो सोचता रह जाता है, वह बहक जाता है। जो धर्म की राह पर चलेंगे वे ‘स्वानंद’ का अनुभव करेंगे। तो आध्यात्मिक स्पंदनों से सराबोर स्वानंद धाम में आप कब पहुंच रहे हैं?