● गुरु पूर्णिमा विशेष

भारत के दक्षिण प्रांत के कोजीकोड जिले स्थित तुनेरी गांव की रहनेवाली एक गरीब महिला उन्नी अम्मा अपने रोजमर्रा के काम से कहीं जा रही थीं। बरसात के दिन थे। हल्की बारिश हो रही थी। उन्होंने देखा कि बरसात में एक शिशु के ऊपर एक नाग फन उठाए लेकिन छाया देते हुए खड़ा है।
नन्हे शिशु को देखकर उन्नी अम्मा के हृदय में ममता जागी। वे दौड़कर गईं और अपने पति चातु नायर को बुला लाईं। दंपति को ख्याल आया कि एक रात पहले ही उन्होंने भगवान शिव का सपना देखा था जिसमें भगवान ने उन्हें अगले दिन उसी जगह पर जाने को कहा था।
दंपति को देखकर नाग ने उस शिशु की तीन प्रदक्षिणा की और शिशु के चरणों को चूमकर झाड़ियों में कहीं लुप्त हो गया। दंपति बच्चे को घर ले आया। बच्चे का नाम रामन रखा गया। घर और गांव के लोग बच्चे को राम कह कर पुकारने लगे। एक बार बच्चा बहुत बीमार हुआ।मां परेशान हो गई। दंपति ने अपने इष्टदेव शिव से प्रार्थना की। महादेव ने स्वप्न के माध्यम से उन्नी अम्मा को इलाज बताया। इलाज के पश्चात बच्चा बिल्कुल स्वस्थ हो गया।
चातुनायर और उन्नी अम्मा एक ब्राह्मण परिवार ईश्वर अय्यर के घर काम करते थे। ईश्वर अय्यर एक प्रसिद्ध वकील व भगवान सूर्य के उपासक थे। अय्यर को यह आभास हो गया कि राम कोई साधारण बच्चा नहीं है। बचपन से ही राम वैरागी प्रवृत्ति का था। एक बात से लोग आश्चर्य चकित थे कि राम के मुख से जो कुछ निकलता, वह सच हो जाता।धीरे-धीरे यह बात फैल गई। बडी संख्या में लोग उसके पास इलाज के लिए आने लगे।
बिना विधिवत शिक्षण ग्रहण किए एक लंगोट में घूमने वाला राम, वेदांत और धर्मशास्त्र की अकाट्य व्याख्या करता। एक दिन ईश्वर अय्यर के निवेदन पर राम ने उन्हें भगवान सूर्य का दर्शन करवाया। उस दिन अय्यर ने कहा कि तुम सबको नित आनंद देते रहते हो, आज से तुम नित्यानंद कहलाओगे।
दक्षिण भारत में कई स्थानों पर विभिन्न लीलाएं कर नित्यानंद हिमालय की ओर चले गए। फिर कई वर्ष काशी में रहे। काशी में गंगा घाट पर वे घंटों ध्यानमग्न बैठे रहते। वे अकसर मां अन्नपूर्णा मंदिर और काल भैरव मंदिर जाते। कुछ वर्ष वहां रहने के बाद नित्यानंद ने गणेशपुरी को अपनी लीला स्थली के रूप में चुना। पहले कुछ साल वे अकलोली नामक स्थान पर रहे। फिर मां वज्रेश्वरी के धाम में रहने लगे। इसके बाद गणेशपुरी में अति प्राचीन शिव मंदिर भीमेश्वर महादेव के समीप रहने लगे। आज भी वहां कई ऐसे बुजुर्ग है जिन्होंने नित्यानंद को हनुमान जी से संवाद करते देखा है। बाबा बहुत कम बोलते लेकिन संतों को पहचानकर उन्हें दृष्टि मात्र से दीक्षा देकर शक्तिपात कर देते। लाखों भक्त देश-विदेश से गणेशपुरी पहुंचते हैं।
शरीर छोड़ने के लिए उन्होंने गणेशपुरी स्थित बैंग्लोरवाला बिल्डिंग को चुना। इसकी घोषणा वे १४ दिन पहले ही कर चुके थे। भक्तगण ‘ॐ नमो भगवते नित्यानंदाय’ का नाम संकीर्तन कर रहे थे। इसपर बाबा ने भक्तों से कहा ‘जय जय गुरु महाराज गुरु, जय जय परब्रह्म सद्गुरु’ का कीर्तन करो। कीर्तन होने लगा। गुरु का नाम, गुरु की लीला वातावरण में गूंजने लगी।
इसी बीच भगवान नित्यानंद ने एक लंबी श्वास ली। ॐकार का दीर्घ उच्चारण किया और शरीर त्याग कर शिवरूप हो गए। यह तिथि थी आषाढ कृष्ण पक्ष द्वादशी, 8 अगस्त 1961।