● रीवा सूद की जैविक खेती बनी मिसाल

ऊना।
2012 में जब रीवा सूद के पति डॉ. राजीव सूद को आंतों के कैंसर का पता चला तो उनकी दुनिया बदल गई। दिल्ली छोड़कर हिमाचल के ऊना जिले लौटने के फैसले ने उनके जीवन को नया मोड़ दे दिया। पति की बीमारी ने रीवा को सोचने पर मजबूर किया कि क्या हमारी रसायनयुक्त खानपान की आदतें इसकी वजह हो सकती हैं? इसी सवाल ने उन्हें जहर-मुक्त भोजन और खेती की ओर मोड़ा।
रीवा ने अपने पुश्तैनी बंजर जमीन पर खेती शुरू की। उन्होंने 2017 में 5 एकड़ में 2,000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए। यह फल कम पानी में पनपता है और कांटेदार होने के कारण जंगली जानवरों से सुरक्षित भी रहता है। इसके साथ ही उन्होंने अश्वगंधा और तुलसी जैसी औषधीय जड़ी-बूटियां भी उगाईं।
प्राकृतिक खाद जैसे जीवामृत और मट्ठे के उपयोग से उन्होंने जमीन को उपजाऊ बनाया। आज उनकी जैविक खेती 70 एकड़ में फैली है, जहां 30,000 से अधिक ड्रैगन फ्रूट के पौधे हैं। रीवा ने केवल खेती नहीं की बल्कि गांव की 300 महिलाओं को ‘Him2Hum’ किसान उत्पादक संगठन के जरिये जोड़ा। ये महिलाएं न केवल फसल उगाती हैं बल्कि उसका प्रसंस्करण कर जूस, पाउडर जैसे उत्पाद बनाकर बेचती हैं। हरियाणा की ममता राठी जैसी महिलाएं अब महीने में ₹10,000 तक कमा रही हैं।
रीवा का ब्रांड ‘Agriva Naturally’ अब सालाना ₹1 करोड़ का कारोबार करता है। उनका लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी जगह बनाना है। आज 67 वर्ष की उम्र में भी रीवा खेतों में सक्रिय हैं। वे कहती हैं, ‘प्रकृति मेरी साथी है। दिल्ली की चकाचौंध छोड़कर मैंने जो चुना, वह मेरे जीवन का सबसे सही निर्णय था।’