● पुस्तक समीक्षा @राजेश विक्रांत

कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार शिव शरण त्रिपाठी की पुस्तक हिंदी साहित्य समग्र हिंदी साहित्य का एक सरल व संक्षिप्त इतिहास है। वैसे अब तक हिंदी साहित्य के इतिहास से संबंधित अनेक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं तथा इस विषय पर काफी शोध किया गया है। सभी लेखकों ने अपने-अपने तरीके से हिंदी साहित्य के इतिहास के संदर्भ में अपनी-अपनी बात कही है। जैसे हिंदी साहित्य का इतिहास- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास- डॉ रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’, हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास (1996)- डॉ. बच्चन सिंह, हिंदी साहित्य और संवेदना का विकाश (1986)- डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी, हिंदी साहित्य का इतिहास (1973)- डॉ नगेंद्र तथा हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास (1965), गणपति चंद्र गुप्त आदि। लेकिन शिवशरण त्रिपाठी जी की पुस्तक हिंदी साहित्य सामग्र अपने ढंग की इकलौती पुस्तक है जिसमें हिंदी साहित्य के इतिहास को सरल व सहज भाषा में लिखा गया है।
शिव शरण त्रिपाठी सन 1971 से कानपुर में पत्रकारिता क्षेत्र में कार्यरत हैं। वे 1971 से 1978 तक विभिन्न समाचार पत्रों में कार्यरत रहे तथा 1979 में उन्होंने अपने स्वयं के समाचार पत्र द मोरल का प्रकाशन शुरू किया द मोरल हिंदी और अंग्रेजी का साप्ताहिक समाचार पत्र है जिसमें कानपुर के इतिहास से संबंधित विशिष्ट शोध परक अंकों का प्रकाशन जारी है। अब तक द मोरल ने 18 विशिष्ट अंकों का प्रकाशन कर देश-विदेश में ख्याति पाई है। इसके साथ ही शिवशरण त्रिपाठी का एक महत्वपूर्ण कार्य है हिंदी साहित्य समग्र का लेखन। यह पुस्तक हिंदी साहित्य का समग्र इतिहास है। यह पुस्तक दो भागों में है। भाग 1 में- हिंदी साहित्य का समग्र इतिहास, भाषा, आदि भाषा, वैदिक भाषा ही आदि भाषा, अक्षर, लिपि, हिंदी भाषा का उद्भव एवं विकास, हिंदी के उत्थान में अहिंदी भाषी राज्यों/ मनीषियों का योगदान, साहित्य, हिंदी साहित्य में सर्वप्रथम, हिंदी साहित्य की गौरव गाथा, आदिकाल (वीरगाथा काल), पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल), उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल), आधुनिक काल (संवत 1900 से अद्यतन) साहित्य का विभाजन, दलित साहित्य, अल्पसंख्यक साहित्य, लुगदी साहित्य, अश्लील साहित्य का विरोध क्यों नहीं, तो कृषि ( खेतिहर) साहित्य क्यों नहीं?, भूमिका भी स्वतंत्र साहित्य विधा है, हिंदी के नाम पर, संसदीय इतिहास में हिंदी के प्रथम वक्ता और हिंदी साहित्य के शब्द ज्ञान में व्याकरण का महत्व तथा भाग 2 में- नवगीत उद्धव एवं विकास यात्रा, नवगीत में मानवीय संवेदना का आधुनिक और उत्तर आधुनिक प्रतिफलन, हिंदी हाइकू, गजल और हिंदी गजल, अमीर खुसरो, हिंदी साहित्य के विकास में कानपुर का योगदान तथा हवाई जहाज में कवि सम्मेलन शीर्षक से लेख हैं।
बता दें कि 7 अक्टूबर 1951 को ग्राम पूरे राम निवास मिश्र (गोगमऊ) जनपद अमेठी (उ.प्र.) में जन्में एडवोकेट शिव शरण त्रिपाठी बीएससी, एम.ए., एल. एल. बी. तक शिक्षित हैं। उन्हें साहित्य मण्डल श्रीनाथ द्वारा (राज.) द्वारा सम्पादक शिरोमणि’, हिन्दी प्रचारिणी समिति कानपुर द्वारा सम्पादक शिरोमणि, भारती परिषद प्रयाग (इलाहाबाद) द्वारा पत्रकारिता का ‘सारस्वत’ सम्मान, पं. जय शंकर उपाध्याय स्मृति से. संस्थान लखनऊ के उत्कृष्ट पत्रकारिता अंलकरण, प्रवीण शोध संस्थान कानपुर द्वारा प्रवीण वरिष्ठ पत्रकार सम्मान, मीडिया फोरम ऑफ इण्डिया, इलाहाबाद द्वारा गुण गौरव सम्मान व ‘पत्रकार गौरव’ सम्मान, रोटरी क्लब कानपुर द्वारा ‘वरिष्ठ पत्रकार सम्मान, विकासिका साहित्यिक संस्था कानपुर द्वारा गुण गौरव’ सम्मान, नेशनल मीडिया कांउसिल, दिल्ली द्वारा ‘श्री नरेन्द्र भाटी पत्रकारिता सम्मान’, मानस संगम, कानपुर, सक्षम संस्था कानपुर सहित अनेक अन्य संस्थाओं द्वारा भी सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है।
हिंदी साहित्य समग्र की भाषा बेहद सुगम व प्रवाह पूर्ण है कि आम हिंदी प्रेमी को बड़ी आसानी से समझ में आ जाती है। लेखक ने इसमें हिंदी साहित्य के लगभग सभी पक्षों पर अपनी कलम चलाई है। 132 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य 550 रुपए है। इसे शतरंग प्रकाशन, लखनऊ ( सुरेंद्र अग्निहोत्री) ने प्रकाशित किया है।