● प्रकृति से प्रदूषण के खिलाफ एक नई उम्मीद

सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)।
हर साल दुनिया में करोड़ों टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिनमें से बड़ा हिस्सा समुद्रों और लैंडफिल में जमा हो जाता है। इस संकट का समाधान अब प्रयोगशालाओं में नहीं बल्कि स्वयं प्रकृति के भीतर मिल रहा है। हालिया वैज्ञानिक शोधों में ऐसे फफूंद (Fungi) खोजे गए हैं जो प्लास्टिक को पचा सकते हैं। ये जीव केवल जैविक नहीं, बल्कि पर्यावरणीय क्रांति के वाहक बन सकते हैं।
समुद्र से मिला प्लास्टिक भक्षक
2024 में डच शोधकर्ताओं ने Great Pacific Garbage Patch में एक अद्भुत फफूंद खोजा – Parengyodontium album। यह समुद्री कवक सूर्य की रोशनी से कमजोर हुए पॉलीथीन (Polyethylene) को प्राकृतिक रूप से तोड़ने में सक्षम है। प्रयोगों में देखा गया कि यह कवक प्रति दिन लगभग 0.044% प्लास्टिक को CO₂ में बदल देता है।
यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पॉलीथीन वह सबसे आम प्लास्टिक है जो समुद्रों में वर्षों तक विघटित नहीं होता। हालांकि, यह प्रक्रिया केवल सतही प्लास्टिक पर ही कारगर है जो सूर्य के संपर्क में आया हो।
अमेज़न की देन – Pestalotiopsis microspora
2011 में येल विश्वविद्यालय की एक छात्र टीम ने अमेज़न वर्षावन में एक विशेष फफूंद की खोज की – Pestalotiopsis microspora। यह कवक प्लास्टिक (विशेषतः पॉलीयुरेथेन) को बिना ऑक्सीजन के भी पचा सकता है।
इसकी विशेषता यह है कि यह लैंडफिल जैसे बंद, वायुरहित स्थानों में भी कार्य करता है जहां अन्य जीव या तकनीकें असफल हो जाती हैं।
हालांकि, इसका प्रयोग अब तक प्रयोगशालाओं तक ही सीमित रहा है पर इसके भविष्य में पर्यावरणीय प्रबंधन में उपयोग की प्रबल संभावना है।
घर के पिछवाड़े में पाए जाने वाले फफूंद भी आशाजनक
2023 में ऑस्ट्रेलियन वैज्ञानिकों ने दो सामान्य फफूंद – Aspergillus terreus और Engyodontium album – की प्लास्टिक तोड़ने की क्षमता का परीक्षण किया।
उन्होंने पाया कि ये कवक सिर्फ 90 दिनों में प्लास्टिक बैग के 27 प्रतिशत हिस्से को विघटित कर सकते हैं। हालांकि यह परिणाम प्रयोगशाला की नियंत्रित स्थितियों में पाया गया था, वास्तविक परिस्थितियों में इसकी प्रभावशीलता अभी शोध का विषय है।
इन सभी खोजों से यह स्पष्ट होता है कि प्रकृति के पास प्लास्टिक प्रदूषण से लड़ने के अपने तरीके हैं। लेकिन अभी इन फफूंदों की क्षमता, व्यवहारिकता और बड़े पैमाने पर उपयोग को लेकर और शोध की आवश्यकता है।