● सूर्यकांत उपाध्याय

एक गांव में साधु दिन-रात ढोलकी बजाकर राम-राम जपता था। पास में रहने वाला एक व्यक्ति उसकी कीर्तनध्वनि से परेशान था। एक दिन वह गुस्से में साधु के पास गया और ताना मारा कि क्या राम नाम से पेट भरता है?
साधु ने शांत भाव से कहा, ‘तू भी राम-राम जप, भगवान तुझे भी रोटी देंगे।’ व्यक्ति ने चुनौती दी, ‘अगर आज राम ने मुझे भोजन करा दिया तो मैं जीवनभर भजन करूंगा, नहीं तो तुम ढोलकी छोड़ देना।’
वह साधु के साथ भजन करता है और भोजन से बचने जंगल चला जाता है। पेड़ पर चढ़कर बैठ जाता है ताकि कोई उसे खाना न दे सके। तभी वहां से बंजारों का एक दल गुजरता है और भोजन बनाकर डाकुओं के डर से छोड़ चला जाता है।
डाकू आते हैं और उसे भोजन करने को मजबूर करते हैं, उसे जहर का संदेह होता है पर जान बचाने के लिए उसे खाना पड़ता है। भोजन करने के बाद उसे एहसास होता है कि यह सब राम की ही लीला थी।
वह सीधा साधु के पास पहुंचता है, चरणों में गिरकर क्षमा मांगता है और राम नाम में लीन हो जाता है।
(चित्र: सांकेतिक)