● चित्रनगरी संवाद मंच में डॉ शीतला प्रसाद दुबे के उद्गार
● देवमणि पांडेय बोले, ‘एक सृजनात्मक साहित्यिक कृति के रूप में रामचरितमानस में रस, छंद और अलंकार का उत्कृष्ट चित्रण’

मुंबई।
‘महाकवि तुलसीदास पूरी दुनिया के काव्य गुरु थे, मगर उनकी विनम्रता की पराकाष्ठा देखिए कि उन्होंने रामचरित मानस के आरंभ में ही कह दिया- कबित बिबेक एक नहीं मोरे। सत्य कहँउ लिखि कागद कोरे। तुलसीदास ने कवि कर्म को परिभाषित किया (अर्थ अमित अति आखर थोरे) और ये भी कहा- ‘निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका। साथ ही उन्होंने स्वयं के कवि न होने की घोषणा भी कर दी -‘कवि न होउं न चतुर कहाऊँ। मति अनुरूप राम गुन गाऊँ। इसके बावजूद तुलसीदास ने एक ऐसे महाकाव्य का सृजन किया जो भारतीय संस्कृति और साहित्य का अमूल्य एवं अप्रतिम ग्रंथ है।’ ये विचार महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ शीतला प्रसाद दुबे ने रविवार 10 अगस्त 2025 को चित्रनगरी संवाद मंच की ओर से केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव के मृणालताई हाल में आयोजित सृजन सम्वाद कार्यक्रम में व्यक्त किये।

श्रीरामचरित मानस और भारतीय समाज विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर आप बालकांड की शुरुआत, अयोध्या कांड का मध्य और उत्तर कांड का अंत पढ़ लेते हैं तो समझिए आपने पूरी रामचरितमानस पढ़ ली। हमारे लोक व्यवहार में रामचरितमानस की क्या भूमिका है, इसकी उन्होंने रोचक व्याख्या की। डॉ दुबे के अनुसार हर व्यक्ति की अपनी अपनी अयोध्या होती है जहां उसका मन लगता है। यह कर्म, व्यवहार और रिश्तों की अयोध्या होती है। व्यक्ति को अपनी अयोध्या कभी नहीं छोड़नी चाहिए।
कार्यक्रम के संयोजक देवमणि पांडेय ने कहा कि लोक भाषा अवधी में लिखे इस महाकाव्य में आदर्श जीवन मूल्य, मर्यादा, त्याग, सेवा, धर्म और कर्तव्यनिष्ठा जैसे गुणों का चित्रण अद्भुत तरीक़े से किया गया है। यह महाकाव्य हमें प्रेम, करुणा और स्वाभिमान के साथ जीना सिखाता है। एक सृजनात्मक साहित्यिक कृति के रूप में रामचरितमानस में रस, छंद और अलंकार का उत्कृष्ट चित्रण है। भारतीय समाज में रामचरितमानस की लोकप्रियता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कवि रहीम का एक दोहा उद्धरित किया-
अनुचित बचन न मानिए, जदपि गुरायसु गाढ़ि।
है रहीम रघुनाथ ते, सुजस भरत को बाढ़ि।।
लेखक सुधाकर पांडेय ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मानस हमें लोक कल्याण की भावना और नैतिकता का संदेश देता है।

‘धरोहर’ के अंतर्गत गायिका नाज़नीन ने मशहूर शायर नक़्श लायलपुरी की ग़ज़ल पेश की-
रस्में उल्फ़त को निभाएं तो निभाएं कैसे
हर तरफ़ आग है दामन को बचाएं कैसे
कविता पाठ के सत्र में अनुज वर्मा, राजू मिश्र कविरा, क़मर हाजीपुरी, अंबिका झा, प्रदीप गुप्ता और रेणु शर्मा ने विविधरंगी कविताएं सुनाईं। अंत में श्रोताओं की माँग पर डॉ शीतला प्रसाद दुबे ने एक लोकगीत सुना कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया- “भूसा बेचाइ झुलनी लइ द्या बालम।”
डॉ मधुबाला शुक्ल ने सूचित किया कि आगामी रविवार 17 अगस्त को चित्रनगरी संवाद मंच में अहमदाबाद की प्रतिष्ठित कवयित्री प्रभा मजूमदार अपना आत्मकथ्य पेश करेंगी एवं चुनिंदा कविताओं का पाठ करेंगी। साथ ही कवि राजू मिश्र कविरा के संयोजन में रिमझिम काव्य संध्या का आयोजन किया गया है जिसमें लब्ध प्रतिष्ठित कवियों का पाठ होगा।