● सूर्यकांत उपाध्याय

एक साधु देश में यात्रा के लिए पैदल निकला। रात हो जाने पर वह एक गांव में आनंद नाम के व्यक्ति के दरवाजे पर रुका। आनंद ने फकीर की खूब सेवा की। फकीर ने आनंद के लिए प्रार्थना की ‘भगवान करे, तू दिनों-दिन बढ़ता ही रहे।’
फकीर की बात सुनकर आनंद हँस पड़ा और बोला, ‘अरे फकीर! जो है, यह भी नहीं रहने वाला।’ फकीर आनंद की ओर देखता रह गया और वहां से चला गया।
दो वर्ष बाद फकीर फिर आनंद के घर गया और देखा कि सारा वैभव समाप्त हो चुका है। पता चला कि आनंद अब बगल के गांव में एक जमींदार के यहां नौकरी करता है। फकीर आनंद से मिलने गया। अभाव में भी आनंद ने फकीर का स्वागत किया, झोपड़ी में फटी चटाई पर बिठाया और खाने के लिए सूखी रोटी दी। दूसरे दिन जाते समय फकीर की आंखों में आंसू थे। फकीर कहने लगा, ‘हे भगवान! ये तूने क्या किया?’
आनंद पुनः हंस पड़ा और बोला, ‘फकीर, तू क्यों दुःखी हो रहा है? महापुरुषों ने कहा है कि भगवान इंसान को जिस हाल में रखे, इंसान को उसका धन्यवाद करके खुश रहना चाहिए। समय सदा बदलता रहता है और सुन! यह भी नहीं रहने वाला।’
फकीर सोचने लगा, ‘मैं तो केवल भेष से फकीर हूं, सच्चा फकीर तो तू ही है, आनंद।’
दो वर्ष बाद फकीर फिर यात्रा पर निकला और आनंद से मिला। देखकर हैरान रह गया कि आनंद अब जमींदारों का जमींदार बन चुका है। मालूम हुआ कि जिस जमींदार के यहां आनंद नौकरी करता था, वह संतानहीन था और मरते समय अपनी सारी जायदाद आनंद को दे गया। फकीर ने आनंद से कहा, ‘अच्छा हुआ, वो जमाना गुजर गया। भगवान करे, अब तू ऐसा ही बना रहे।’
यह सुनकर आनंद फिर हंस पड़ा और कहने लगा, ‘फकीर! अभी भी तेरी नादानी बनी हुई है।’
फकीर ने पूछा, ‘क्या यह भी नहीं रहने वाला?’
आनंद ने उत्तर दिया, ‘हां, या तो यह चला जाएगा या फिर इसको अपना मानने वाला ही चला जाएगा। कुछ भी रहने वाला नहीं है। अगर शाश्वत कुछ है तो वह है परमात्मा और उस परमात्मा का अंश आत्मा।’ आनंद की बात को फकीर ने गौर से सुना और चला गया।
करीब डेढ़ साल बाद फकीर लौटकर आया तो देखा कि आनंद का महल तो है, किन्तु उसमें कबूतर गुटरगूं कर रहे हैं और आनंद का देहांत हो चुका है। बेटियां अपने-अपने घर चली गईं, बूढ़ी पत्नी कोने में पड़ी है।
फकीर कहने लगा, ‘अरे इंसान! तू किस बात का अभिमान करता है? क्यों इतराता है? यहां कुछ भी टिकने वाला नहीं है। दुःख या सुख कुछ भी सदा नहीं रहता। तू सोचता है, पड़ोसी मुसीबत में है और मैं मौज में हूँ। लेकिन सुन, न मौज रहेगी और न ही मुसीबत। सदा तो उसको जानने वाला ही रहेगा। सच्चे इंसान वे हैं, जो हर हाल में खुश रहते हैं। माल मिला तो उस माल में खुश और हाल बिगड़ा तो उस हाल में भी खुश।
फकीर कहने लगा, ‘धन्य है आनंद, तेरा सत्संग! और धन्य है तुम्हारे मालिक। मैं तो झूठा फकीर हूं। असली फकीरी तो तेरी जिंदगी है। अब मैं तेरी तस्वीर देखना चाहता हूं। कुछ फूल चढ़ाकर दुआ तो मांग लूं।’
फकीर दूसरे कमरे में गया तो देखा कि आनंद ने अपनी तस्वीर पर लिखवा रखा है, ‘आखिर में, यह भी नहीं रहेगा…!’