● सूर्यकांत उपाध्याय

मिथिला नगरी में महाराज जनक राज्य करते थे। यज्ञ के लिए भूमि जोतते समय हल के फाल से एक कन्या उत्पन्न हुई, जिसे उन्होंने सीता नाम दिया।
एक दिन उद्यान में सखियों संग खेलते हुए सीता ने एक शुक-शुकी का जोड़ा देखा, जो वार्तालाप में श्रीराम और सीता के भविष्य का वर्णन कर रहे थे। सखियों ने उन्हें पकड़कर सीता के पास लाया। पक्षियों ने बताया कि वे महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहते हैं और रामायण कथा सुन चुके हैं। उन्होंने श्रीराम के अवतार, विवाह और राज्य का वर्णन किया।
शुकी ने सीता का स्वरूप पहचानकर श्रीराम के अद्वितीय रूप का वर्णन किया। सीता ने अपना परिचय दिया और कहा कि श्रीराम से विवाह के बाद ही उन्हें मुक्त करेंगी। शुकी गर्भवती थी और छोड़ने की प्रार्थना करने लगी किंतु सीता ने मना कर दिया।
अंततः शुकी ने क्रोधित होकर शाप दिया -जैसे आपने मुझे पति से अलग किया, वैसे ही गर्भावस्था में आपको भी अपने पति से वियोग सहना पड़ेगा। उसके प्राण त्यागने पर शुक ने कहा कि वह अयोध्या में जन्म लेकर सीता के वियोग का कारण बनेगा।
यही शुक अगले जन्म में रजक (धोबी) बना और उसके कथन से सीता को पति-वियोग सहना पड़ा। इस प्रकार उस पक्षी के शाप ने सीता के वनवास का मार्ग प्रशस्त किया।