● भक्ति में आजादी की मुक्ति – निरंकारी राजपिता रमित जी

मुंबई।
सम्पूर्ण भारतवर्ष ने जहां स्वतंत्रता के 79 गौरवशाली वर्ष का उत्सव मनाया, वहीं संत निरंकारी मिशन ने मुक्ति पर्व को आत्मिक स्वतंत्रता के रूप में श्रद्धा और समर्पण से भव्यतापूर्वक आयोजित किया। यह पर्व केवल एक स्मृति नहीं बल्कि आत्मिक चेतना के जागरण और जीवन के परम उद्देश्य का प्रतीक है।
मुक्ति पर्व समागम का आयोजन निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन अध्यक्षता में जहां दिल्ली स्थित निरंकारी ग्राउंड नं. 8, बुराड़ी रोड पर किया गया, वहीं विश्वभर में मिशन की सभी शाखाओं में भी मुक्ति पर्व के अवसर पर विशेष सत्संग का आयोजन कर मिशन के पुरातन दिव्य संतों को नमन किया गया।
मुंबई महानगर प्रदेश में मुक्ति पर्व के उपलक्ष्य में करीब 55 स्थानों पर विशेष सत्संग समारोहों का आयोजन किया गया जिनमें चेंबूर, नेवी नगर, कालाचौकी, डिलाईल रोड, दादर, विले पार्ले, अंधेरी, गोरेगांव, मालाड, कांदिवली, बोरिवली, दहिसर, घाटकोपर, विक्रोली, कांजुरमार्ग, भांडुप, मुलुंड समेत ठाणे, नवी मुंबई, पनवेल, उरण, भाईंदर, वसई-विरार, डोंबिवली, भिवंडी, कल्याण, उल्हासनगर, बदलापुर इत्यादि स्थानों का समावेश था। श्रद्धालुजनों ने शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुद्धवंती जी, राजमाता कुलवंत कौर जी, माता सविंदर हरदेव जी, भाई साहब प्रधान लाभ सिंह जी, ब्रह्मर्षि ऋषि व्यासदेवजी, ब्रह्मर्षि ऋषि कमल जी, गुरबख्श सिंह ‘राजकवि’ जी एवं अन्य अनेक समर्पित भक्तों को हृदय से स्मरण कर उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त की।

आध्यात्मिकता के पावन वातावरण में समस्त श्रद्धालुजनों को सम्बोधित करते हुए निरंकारी राजपिता जी ने फरमाया कि आज 15 अगस्त को जहाँ देश आज़ादी का पर्व मना रहा है, वहीं संतजन इसे मुक्ति पर्व के रूप में आत्मचेतना और भक्ति के संदेश के साथ मना रहे हैं। जैसे झंडा और देशभक्ति गीत आज़ादी के प्रतीक हैं, वैसे ही एक भक्त का जीवन सेवा, समर्पण और भक्ति की महक से भरा होता है। सद्गुरु का दिया ब्रह्मज्ञान ही असली आज़ादी है, जो हमें ‘मैं’ और अहंकार से मुक्त करता है।
मुक्ति पर्व की मूल भावना यही है कि जैसे भौतिक स्वतंत्रता हमें राष्ट्र की उन्नति का मार्ग देती है, वैसे ही आत्मिक स्वतंत्रता यानि जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति – मानव जीवन की परम उपलब्धि है। यह मुक्ति केवल ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से ही संभव है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है, और इस जीवन के वास्तविक उद्देश्य का बोध कराती है।