
● सूर्यकांत उपाध्याय
किसी गाँव में एक पुजारी रहता था। वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार गाँव में बाढ़ आ गई। गाँव के सभी लोग आवश्यक सामान लेकर ऊँचे स्थान की ओर जाने लगे।
जाते-जाते उन्होंने पुजारी से भी साथ चलने को कहा पर पुजारी ने उत्तर दिया, ‘तुम लोग जाओ, मुझे विश्वास है कि भगवान मेरी रक्षा करने अवश्य आएंगे।’
पुजारी भगवान की प्रतीक्षा करने लगा। तभी एक जीप उसके पास आकर रुकी। उसमें बैठे लोगों ने पुजारी से चलने का आग्रह किया लेकिन पुजारी ने फिर वही उत्तर दिया, ‘तुम लोग जाओ, मुझे तो भगवान बचाने आएंगे।’
पानी लगातार बढ़ता जा रहा था। कुछ देर बाद एक नाव वाला आया और पुजारी से चलने को कहा। परंतु पुजारी ने उससे भी वही बात कही।
अब पानी कंधे तक पहुँच गया, फिर भी पुजारी को विश्वास था कि भगवान उसे अवश्य बचाएँगे। पानी और बढ़ने पर वह घर की छत पर चढ़ गया और भगवान का इंतज़ार करने लगा।
थोड़ी देर में एक बचाव हेलिकॉप्टर आया। ऊपर से रस्सी फेंकी गई और पुजारी से पकड़ने को कहा गया। किंतु पुजारी ने फिर कहा, ‘तुम लोग जाओ, मुझे तो भगवान ही बचाने आएंगे।’ पानी बढ़ता गया।
आख़िरकार पानी इतना बढ़ गया कि पुजारी उसमें डूबकर मर गया। मरने के बाद जब वह भगवान के पास पहुँचा तो रोषपूर्वक बोला, ‘मैं आपका इतना बड़ा भक्त था। मुझे पूर्ण विश्वास था कि आप मुझे बचाने आएंगे। मैं प्रतीक्षा करता रहा, पर आप क्यों नहीं आए?’
भगवान ने उत्तर दिया, ‘मैंने तो तुम्हें तीन बार बचाने की कोशिश की थी, पर तुमने स्वयं ही उसे अस्वीकार कर दिया। पहली बार मैंने तुम्हारे लिए जीप भेजी, तुम नहीं आए। दूसरी बार नाव भेजी, तब भी नहीं आए। तीसरी बार हेलिकॉप्टर भेजा पर तुमने उसे भी ठुकरा दिया। मैंने तुम्हारे विश्वास को नहीं तोड़ा बल्कि तुमने ही अपने उद्धार का अवसर खो दिया।’
सीख: ईश्वर स्वयं प्रकट होकर आपकी-हमारी मदद नहीं करेगा। सहायता के लिए वह किसी न किसी को प्रेरणा देगा और ऐसी व्यवस्था करेगा कि आपकी सहायता हो जाए। सहायता के तात्विक ज्ञान को समझना आवश्यक है।