भारत में यूनेस्को द्वारा प्रमाणित धरोहर स्थलों की सूची लंबी है, लेकिन महाराष्ट्र का योगदान इसमें विशेष है। यहाँ की गुफाएँ, मंदिर, किले और औपनिवेशिक स्थापत्य केवल पत्थरों में गढ़ी कहानियाँ नहीं बल्कि पूरे समाज और संस्कृति की आत्मा को प्रतिबिंबित करते हैं। महाराष्ट्र की यूनेस्को धरोहरें कला, आस्था, स्थापत्य और संघर्ष सभी को एक साथ पिरोए हुए हैं। अजंता-एलोरा की भित्तिचित्र और शिल्पकला विश्व को भारतीय रचनाशीलता का परिचय कराती हैं। एलिफेंटा गुफाएँ भक्ति का अनूठा रूप प्रस्तुत करती हैं। मुंबई के स्टेशन और आर्ट डेको इमारतें आधुनिकता का अहसास कराती हैं जबकि मराठा किले आज भी वीरता और स्वाभिमान की गाथा सुनाते हैं। यही कारण है कि महाराष्ट्र को ‘जीवंत संग्रहालय’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

● अजंता गुफाएँ : चित्रकला का अमर कैनवास
संभाजीनगर जिले की पहाड़ियों में बसी अजंता गुफाएँ (यूनेस्को धरोहर – 1983) मानो समय के साथ जमी हुई चित्रकला की किताब हैं। यहाँ की दीवारों पर बनी बुद्ध की जीवनगाथा और जातक कथाएँ आज भी उतनी ही जीवंत लगती हैं।
● एलोरा गुफाएँ : सहिष्णुता का अद्भुत संगम
एलोरा गुफाएँ (1983) अपने आप में धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक हैं। बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म की कला यहाँ एक साथ दिखाई देती है। कैलाश मंदिर को देखकर फ्रांसीसी विद्वान जीन बैप्टिस्ट टावर्नियर ने कहा था, ‘यह एक ऐसा अद्भुत निर्माण है, जिसे यदि यूरोप में देखा होता तो इसे संसार का आठवाँ अजूबा घोषित किया जाता।’
● एलिफेंटा गुफाएँ : शिव की त्रिमूर्ति का वैभव
मुंबई से समुद्र के रास्ते गारपरी द्वीप पर पहुँचना अपने आप में रोमांच है। यहाँ स्थित एलिफेंटा गुफाएँ (1987) भगवान शिव की त्रिमूर्ति प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध हैं। छह मीटर ऊँची यह मूर्ति सृजन, पालन और संहार, तीनों स्वरूपों को दर्शाती है। मुंबई के एक बुजुर्ग नाविक कहते हैं, ‘जब भी लहरों के बीच से त्रिमूर्ति की झलक मिलती है, लगता है मानो समुद्र भी शिव का स्तवन कर रहा हो।’
● छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस : औपनिवेशिक स्थापत्य का गहना
मुंबई का सीएसएमटी रेलवे स्टेशन (2004), जो विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से भी प्रसिद्ध रहा, गोथिक स्थापत्य का अनमोल नमूना है। रोज़ाना लाखों यात्री यहाँ से गुजरते हैं, लेकिन इसके शिखरों, गुंबदों और शिल्पकारी पर नज़र टिक जाए तो ऐसा लगता है मानो आप इतिहास की सुरंग से गुजर रहे हों।
यूनानी स्थापत्य विशेषज्ञों ने इसे ‘औपनिवेशिक युग का भारत में सबसे भव्य प्रतीक’ कहा है।
● विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको एन्सेम्बल: आधुनिक मुंबई की पहचान
2018 में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त यह क्षेत्र ओवल मैदान और मरीन ड्राइव के आसपास की इमारतों से जुड़ा है। विक्टोरियन गोथिक और आर्ट डेको शैलियाँ यहाँ एक-दूसरे से संवाद करती प्रतीत होती हैं। यहाँ खड़े होकर लगता है जैसे दो सदियाँ आमने-सामने खड़ी हैं और मुंबई उनकी धड़कन है।
● मराठा सैन्य परिदृश्य : किलों का गौरव
2025 में महाराष्ट्र के 12 प्रमुख मराठा किलों को यूनेस्को धरोहर में शामिल किया गया। रायगड, शिवनेरी, प्रतापगढ़, सिंधुदुर्ग और सुवर्णदुर्ग जैसे किले न केवल स्थापत्य की मिसाल हैं बल्कि मराठा स्वराज्य के साहस और स्वाभिमान के प्रतीक भी हैं।