● ‘ईश्वर तक पहुंचने का माध्यम है गुरुदीक्षा’
● ‘अपनी काया नहीं आत्मा को पहचानो’

मुंबई। ऋषि पंचमी के पावन अवसर पर गुरुवार को बोरीवली के कोराकेंद्र मैदान पर आयोजित दीक्षा कार्यक्रम में मुंबई के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से गुरु दीक्षा प्राप्त की। सनातन संस्कृति में गुरु दीक्षा गुरु-शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे शिष्य के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। इस अवसर पर महाराजश्री ने अपने दिव्य आशीर्वचन में कहा कि गुरूदीक्षा से जीवन में आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन प्राप्त करने की राह खुलती है। गुरु के बिना ईश्वर भी पूजन स्वीकार नहीं करतत हैं महाराजश्री ने कहा कि हम का मतलब हमारा शरीर नहीं है। हमारा परिचय हमारी आत्मा है। वही ब्रह्म है। गुरुदीक्षा के बाद जीवन में शुद्धता आती है। पवित्रता आती है। जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है और उसी से मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूरा होता है। कमाना, खाना, शरीर पालना आदि भौतिक संतुष्टि मात्र है। आंतरिक संतुष्टि के लिए आत्मा को ईश्वर तक की ओर ले जाना होता है जो गुरु के मार्गदर्शन से सही राहपर चलने से प्राप्त होता है। उसी से मोक्ष मिलता है।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज इन दिनों मुंबई में बोरीवली के कोराकेंद्र मैदान पर चातुर्मास्य महामहोत्सव को सानिध्य प्रदान कर रहे हैं। आयोजन स्थल पर 33 कोटी गौप्रतिष्ठा महायज्ञ भी निरंतर चल रहा है। अनेक धार्मिक अनुष्ठान, रुद्राभिषेक, पादुका पूजन, महायज्ञ आदि कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में सभी जनों का आना लगा हुआ है।
● शंकराचार्य सेवालयों एवं मठों की बैठक हुई
सुप्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के उत्तराम्नाय शंकराचार्य के विभिन्न सेवालयों एवं मठों के पदाधिकारियों की एक विशाल बैठक यहां बोरीवली में हुई। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सभी मठों, गुरुकुलों तथा गौशालाओं की विस्तृत रिपोर्ट ली और उनके संरक्षण व विकास के लिए मार्गदर्शन दिया। महाराजश्री ने कहा कि सनातन संस्कृति की अगली पीढ़ी तैयार करने के लिए वेदों की पढ़ाई कर रहे गुरुकुलों को पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने और उन्हें आधुनिक शिक्षा से परिचित कराने के उपक्रम भी चलाए जा रहे हैं।