
थिम्फू।
हिमालय की गोद में बसा छोटा-सा देश भूटान पूरी दुनिया के लिए जलवायु संरक्षण की मिसाल बन गया है। जहां अधिकांश देश अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने की जद्दोजहद में लगे हैं, वहीं भूटान एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जिसने न केवल कार्बन-न्यूट्रल बल्कि नेट-नेगेटिव कार्बन फुटप्रिंट हासिल किया है।
70 प्रतिशत से अधिक भूमि पर जंगल
भूटान की भौगोलिक और संवैधानिक विशेषताओं ने इसे पर्यावरणीय दृष्टि से अद्वितीय बना दिया है। देश का लगभग 70 से 75 प्रतिशत हिस्सा घने जंगलों से ढका हुआ है। भूटान के संविधान में स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी स्थिति में कम-से-कम 60% भू-भाग हमेशा वनाच्छादित रहना चाहिए। यही जंगल हर वर्ष करोड़ों टन कार्बन डाइऑक्साइड को सोखकर भूटान को हराभरा और शुद्ध रखते हैं।

कार्बन शोषण बनाम उत्सर्जन
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, भूटान के जंगल हर साल लगभग 9 से 9.5 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेते हैं। इसके मुकाबले देश का कुल वार्षिक उत्सर्जन करीब 2 से 3.8 मिलियन टन CO₂ के आसपास है। इस संतुलन के चलते भूटान का कार्बन फुटप्रिंट न केवल शून्य बल्कि शुद्ध ऋणात्मक (नेट-नेगेटिव) है।
हाइड्रोपावर से स्वच्छ ऊर्जा
भूटान की ऊर्जा प्रणाली मुख्य रूप से जलविद्युत (हाइड्रोपावर) पर आधारित है। लगभग पूरी घरेलू ऊर्जा आवश्यकता हाइड्रोपावर से पूरी होती है। यही नहीं, भूटान भारत जैसे पड़ोसी देशों को भी बिजली निर्यात करता है। अनुमान है कि इस निर्यात से हर साल लगभग 6 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन रोका जाता है, क्योंकि यह स्वच्छ ऊर्जा कोयले या अन्य जीवाश्म ईंधनों की जगह लेती है।

जलवायु नेतृत्व की मिसाल
भूटान ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी खुद को जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में एक नेतृत्वकारी देश के रूप में स्थापित किया है। ‘ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस’ को विकास का पैमाना मानने वाले इस देश ने दिखा दिया है कि आर्थिक प्रगति और पर्यावरण संरक्षण साथ-साथ चल सकते हैं। भूटान का यह मॉडल उन विकासशील और विकसित देशों के लिए भी प्रेरणा है, जो औद्योगिक विकास और ऊर्जा की बढ़ती मांग के कारण अपने कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं।
स्रोत:
CarbonCredits.com | Earth.org | Harvard International Review | UNDP Bhutan | NEC Bhutan | Wikipedia