
मुंबई।
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि मृत माताओं की स्मृति को समर्पित होती है। यह दिन केवल कर्मकांड का नहीं बल्कि अपनी माताओं के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने का अवसर है। जिन माताओं ने हमें जीवन दिया और जिनके स्नेह से हम पले-बढ़े, उनके प्रति आभार व्यक्त करने का यह विशेष पर्व है।
पुराणों में वर्णित है कि मातृ नवमी पर श्रद्धा-भाव से किया गया श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान मातृ-आत्माओं को प्रसन्न करता है। उनकी कृपा से साधक को जीवन में सुख, समृद्धि और संतोष का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन किया गया स्मरण और दान, हमारे जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर पुण्य का मार्ग प्रशस्त करता है।
विशेष मुहूर्त
- कुतुप मुहूर्त : प्रातः 11:51 से 12:41 तक
- रौहिण मुहूर्त : 12:41 से 01:30 तक
- अपराह्न काल : 01:30 से 03:58 तक
इन पवित्र क्षणों में मातृ नवमी के कर्मकांड पूर्ण करने का विशेष महत्व है।
मातृ नवमी पर किए जाने वाले पुण्य कार्य
प्रातः व संध्या दोनों समय तुलसी माता को जल अर्पित करें और दीप प्रज्वलित करें। तुलसी के नीचे दीपक जलाना मातृ-आशीर्वाद की प्राप्ति कराता है। इसके अतिरिक्त पीपल वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर, काले तिल मिश्रित जल से अर्घ्य दें। इससे मातृ-आत्माएं प्रसन्न होती हैं। जरूरतमंद महिलाओं को सुहाग का सामान भेंट करें, इससे सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है। गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन, अन्न, वस्त्र और धन का दान करें। यह पुण्य कार्य मातृ-आशीर्वाद को और अधिक प्रबल करता है।
