● जब विशेष विधि न आती हो तब कैसे करें श्राद्ध?

■ पंडित धीरज मिश्र
सर्वपित्री अमावस्या पितरों को स्मरण करने, उनके प्रति कृतज्ञता जताने और अपने जीवन में संस्कारों को जीवित रखने का पर्व है। चाहे किसी को संपूर्ण विधि आती हो या न आती हो, शुद्ध हृदय से किया गया तर्पण ही पितरों को संतुष्ट करता है। पितृपक्ष की अंतिम तिथि को सर्वपित्री अमावस्या या महालय अमावस्या कहा जाता है। इस दिन वे लोग भी श्राद्ध करते हैं जिन्हें अपने पितरों की श्राद्ध तिथि ज्ञात नहीं होती। इसलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
• विधि: इस दिन प्रातःकाल स्नान करके पवित्र वस्त्र धारण करें। घर के आंगन या निकट के नदी-घाट पर जल, काले तिल और कुश मिलाकर तर्पण करें। पिंडदान के लिए आटे या चावल के पिंड बनाए जाते हैं। पिंडों को जल में प्रवाहित करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन और दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया जाता है। कुछ लोग व्रत रखते हैं और दिनभर सात्विक भोजन ही ग्रहण करते हैं।
पितरों की प्रसन्नता के लिए गरीबों, असहायों और पशु-पक्षियों को अन्नदान भी शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से ‘पितृ गायत्री मंत्र’ या ‘ॐ पितृदेव्यै नमः’ का जप किया जाता है।

• जब विशेष विधि न आती हो तब क्या करें?
कई बार लोगों को यह चिंता होती है कि यदि श्राद्ध की संपूर्ण विधि या मंत्र ज्ञात न हो तो क्या करना चाहिए। शास्त्रों में इसका स्पष्ट उल्लेख है कि श्रद्धा और संकल्प ही श्राद्ध का मूल है। यदि किसी को विधि न आती हो तो भी वे स्नान करके अपने हृदय से पितरों को स्मरण करें और शुद्ध मन से जल, तिल, पुष्प या चावल अर्पित करें। ‘हे पितृगण, जो भी त्रुटि हो वह मेरी श्रद्धा से पूरी हो’ – ऐसा भाव रखकर साधारण तर्पण भी पूर्ण माना जाता है।
• इसके अतिरिक्त एक साधारण विधि यह भी है कि किसी पीपल के वृक्ष के नीचे जल और तिल अर्पित कर पितरों को प्रणाम करें। यदि संभव हो तो गौ, कुत्ते, कौवे अथवा चींटियों को अन्न दें। यही पितरों को अर्पण करने के समान फलदायी होता है।
• इसके अलावा एक और विधि है कि आर्थिक सामर्थ्य न होने पर, शरीर से कमजोर होने पर या किसी अन्य विवशता में दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाएं और दोनों हाथ ऊपर करके अपने पितरों का ध्यान करके मन ही मन कहें, ‘हे पितरों! मैं आपका ‘अमुक’ (मन में ही कारण बोलें) कारण से सविधि तर्पण-श्राद्ध नहीं कर पा रहा हूं। मुझपर और मेरे परिवार पर कृपा करें।
सर्वपित्री अमावस्या केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हम केवल अपने श्रम और प्रयास से ही नहीं बल्कि पूर्वजों के आशीर्वाद और संस्कारों से भी आगे बढ़ते हैं। पितृ तर्पण से परिवार में शांति, संतोष और समृद्धि बनी रहती है।
आज के समय में जब पारिवारिक रिश्ते ढीले पड़ रहे हैं, तब यह पर्व हमें कृतज्ञता, एकता और वंश परंपरा के महत्व को दोबारा समझने का अवसर देता है।