- भोला जी की कलम से

लखनऊ। उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर जनपद के महानपुर गांव ने 80 के दशक में सांप्रदायिक तनाव के बीच अनोखी मिसाल पेश की। मुस्लिम बहुल इस गांव ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर डॉ. रामकुमार द्विवेदी को प्रधान चुना। वे केवल प्रधान ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र के विश्वास का नाम बन गए।
स्वास्थ्य विभाग की सुरक्षित नौकरी छोड़ उन्होंने हनुमानगंज में निजी क्लिनिक खोली। दवा के साथ दुआ, संवेदनशीलता और ईमानदारी उनकी पहचान बन गई। दर्जनों डॉक्टर होने पर भी मरीज सबसे पहले उन्हीं के पास आते।
सत्तर–अस्सी के दशक में उनकी यज़दी मोटरसाइकिल गांव-गांव उम्मीद की आहट बन गई। क्लिनिक से लौटते ही बच्चे प्रसन्न होकर कहते, ‘बाबूजी आ रहे हैं, टॉफ़ी-बिस्किट मिलेगा।’
प्रधान रहते हुए उन्होंने बिजली, सड़क, नालियां, स्कूल और गरीबों के लिए आवास दिलवाए। शिकायतों और साजिशों के बावजूद उनकी ईमानदारी की जिलाधिकारी ने प्रशंसा की और महानपुर को आदर्श ग्राम पंचायत घोषित करने की सिफारिश हुई।
उन्होंने बाबा भगवानदास आदर्श विद्यालय व शिशु शिक्षा निकेतन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। क्षेत्रीय रामलीला व दुर्गा पंडाल परंपरा के भी वे अग्रदूत थे। 1975 में अपनी भूमि दान कर विशाल शिव मंदिर बनवाया। बाद में जीर्णोद्धार कर वहां हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित की। प्रतिवर्ष भंडारे की परंपरा उन्होंने शुरू कराई।
वे जीवनभर कांग्रेसी विचारधारा से जुड़े रहे। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी तक उन्हें पहचानते थे। 19 सितंबर 2025 की शाम क्लिनिक से लौटने के बाद अचानक सीने में दर्द हुआ और वे शांत हो गए। जिला अस्पताल में डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित किया।
84 वर्षीय डॉ. द्विवेदी ने दिखाया कि करुणा, ईमानदारी और सेवा से एक व्यक्ति भी पूरे क्षेत्र को बदल सकता है। उनकी छोड़ी विरासत विद्यालय, क्लिनिक, मंदिर और सांस्कृतिक परंपराएँ उन्हें सदैव जीवित रखेंगी।
