● सूर्यकांत उपाध्याय

मैं बिस्तर से उठा ही था कि अचानक छाती में तेज दर्द हुआ। मन में ख्याल आया, क्या यह हार्ट की तकलीफ है? ऐसे विचारों के साथ मैं अगली बैठक के कमरे की ओर गया। वहाँ पहुंच कर देखा कि पूरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था। मैंने पत्नी से कहा, “मेरी छाती में आज रोज़ से ज़्यादा दर्द हो रहा है, डॉक्टर को दिखाकर आता हूँ।”
वह मोबाइल देखते हुए बोलीं, “हाँ, मगर संभलकर जाना; काम हो तो फोन कर देना।”
मैं एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग गया। पसीना आ रहा था और स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही थी। तभी हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव साइकिल पर आया। साइकिल को ताला लगाकर वह मुझे सामने खड़ा देख कर बोला, “साहब, ऐक्टिवा चालू नहीं हो रही?” मैंने कहा, “नहीं… आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती, इतना पसीना क्यों आ रहा है?”
ध्रुव ने कहा, “इस हालत में स्कूटी किक मत मारिए, मैं मारकर चला देता हूँ।” एक किक में उसने ऐक्टिवा स्टार्ट कर दी और पूछा, “साहब, अकेले जा रहे हैं?” मैंने कहा, “हाँ।” उसने कहा, “ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते, मेरे पीछे बैठ जाइए।” मैंने हिचकिचाकर पूछा, “तुम्हें ऐक्टिवा चलानी आती है?” वह बोला, “साहब, गाड़ी का लाइसेंस है, चिंता छोड़कर बैठ जाओ।”
अस्पताल पहुँचते ही ध्रुव दौड़कर अंदर गया और व्हीलचेयर लेकर आया। “साहब, अब चलिए मत, इस कुर्सी पर बैठ जाइए।” ध्रुव के मोबाइल पर लगातार कॉल आ रहे थे, घर से फोन आए होंगे। उसने किसी को कहा कि आज नहीं आ सकता। वह डाक्टरों जैसा ही व्यवस्थित व्यवहार कर रहा था; बिना बताए उसे समझ गया था कि मुझे हार्ट की तकलीफ है। व्हीलचेयर से मुझे ICU तक पहुँचाया गया और डॉक्टरों ने शीघ्र परीक्षण शुरू कर दिए।
डॉक्टर ने बताया कि समय पर पहुँच जाना और व्हीलचेयर का इस्तेमाल मेरे लिए जीवनरक्षक साबित हुआ। कहा गया कि ऑपरेशन आवश्यक है और स्वजन के हस्ताक्षर चाहिए। मैंने ध्रुव से कहा, “बेटा, क्या तू हस्ताक्षर कर देगा?” वह हिचकिचाया पर मैंने कहा, “मैं नीचे सही कर दूँगा, ज़िम्मेदारी मेरी रहेगी।”
अंततः ध्रुव ने मेरे कहने पर दस्तखत कर दिए और कहा, “घर को फोन कर दिया जाए।” उसी समय मेरी पत्नी का कॉल ध्रुव के मोबाइल पर आया; ध्रुव ने शांति से बातें समझाते हुए कहा कि ऑपरेशन शुरू होने से पहले घर को बुला लिया जाए।
ऑपरेशन के बाद जब मैं होश में आया, मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था। पत्नी ने बताया कि ध्रुव पहले ही छुट्टी लेकर गाँव चला गया था क्योंकि उसके पिता का हार्ट अटैक हुआ था। मुझे तब समझ आया कि ध्रुव ने मुझे अपने पिता जैसा समझकर बचाया था। मेरा परिवार माफी मांग रहा था।
वास्तविकता: एक निर्जीव मोबाइल ने कितनों को अपने दिल से दूर कर दिया है।
