
● मुंबई । प्रतिकूल परिस्थिति में भी अनुकूलता बनाकर जीवन जीना ही मनुष्य जन्म की सार्थकता है। रामचरितमानस के नायक तो अद्वितीय हैं ही, इसके खलनायकों में भी कुछ विशेष गुण पाए जाते हैं। संन्यास आश्रम में चल रही कथा में मानस मुक्ता ने भरत जी को रामचरितमानस का तुलसी-पत्र बताते हुए कहा कि जिस प्रकार भगवान किसी भी प्रसाद को तब तक ग्रहण नहीं करते, जब तक उसमें तुलसी पत्र न हो, वैसे ही भरत जी के बिना रामकथा पूर्ण नहीं होती। रामकथा में जहाँ भरत जी का प्रसंग आता है, वहाँ अन्य कथाएँ मौन हो जाती हैं।
मानस मुक्ता ने स्पष्ट किया कि सनातन धर्म ने ऊँच-नीच का भेदभाव कभी स्वीकार नहीं किया; यदि ऐसा होता तो गुरु वशिष्ठ निषादराज को दौड़कर हृदय से नहीं लगाते। भारतीय संस्कृति और सभ्यता में गाली देने की परंपरा भी कभी नहीं रही। तपस्विनी के वेश में बेटी सीता को देखकर जनक जी ने प्रसन्न होकर कहा – “बेटी, तुमने आज दोनों कुलों को धन्य कर दिया।” बेटियों को पिता के घर से मिले संस्कार उनकी ससुराल में सदैव उपयोगी सिद्ध होते हैं।
भरत चरित्र को निष्ठापूर्वक सुनने वाले को रामजी की भक्ति प्राप्त होती है। षष्ठम दिवस की रामकथा में प्रयागराज नारायण आश्रम से आयीं संत गोपी और संत लक्ष्मी के पावन सान्निध्य में श्रोताओं के साथ सद्गुरु फाउंडेशन ट्रस्ट के चेयरमैन गणेश अग्रवाल, ममता गणेश अग्रवाल, नीरज अग्रवाल, राजेश पोद्दार, अंशुल वर्मा, भारती बेन, भूमिका वर्मा, अनुसूया, कैलाश शर्मा, राजेश सिंह, विजय सिंह, सचिन, सौम्या सिंह, भजन गायिका सरला मीरचंदानी एवं हम रामजी के रामजी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट मुंबई के सहसचिव दिनेशप्रताप सिंह ने भी कथा-श्रवण का लाभ प्राप्त किया।
