
मुंबई। विलेपार्ले (पश्चिम) स्थित संन्यास आश्रम में नारायण भक्त मंडल द्वारा आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के सप्तम दिवस की कथा में मानस मुक्ता पूज्या यशुमति जी ने कहा कि रामचरितमानस में भक्ति के सभी मार्गों का वर्णन है किन्तु गंतव्य सभी का एक ही है। हम किसी भी पथ पर चलकर अपने गंतव्य तक पहुँच सकते हैं।
किष्किंधा कांड को भगवान का हृदय बताते हुए उन्होंने कहा कि इसका पाठ भी फलदायी होता है। बालि और सुग्रीव में भी गहरा भ्रातृत्व प्रेम था किन्तु भ्रमवश उनके संबंध बिगड़ गए। इसलिए भ्रम से बचना चाहिए। मानस से एक सूत्र यह भी मिलता है कि राजनीति में चाटुकार तो बहुत मिल जाते हैं, लेकिन विश्वासपात्र मंत्री नहीं मिलते। ऐसे विश्वसनीय लोगों का कभी त्याग नहीं करना चाहिए और चाटुकारों से दूर रहना चाहिए।
जो व्यक्ति सभी निर्णय स्वयं करता है, वह रावण वृत्ति का पोषक होता है। रामचरितमानस जीवन जीना सिखाता है, इसलिए इसका अध्ययन और अनुकरण अवश्य करना चाहिए। संसार में विषयी व्यक्ति सबसे कमजोर होता है। कर्मकांड के समय सबसे पहले दीपक इसलिए जलाया जाता है कि वह हमारी सभी क्रियाओं का साक्षी होता है।
परमात्मा का प्रत्येक निर्णय मंगलकारी होता है, इसलिए जीवन में अप्रिय घटित हो जाने पर भी प्रभु की भक्ति का त्याग कभी नहीं करना चाहिए। बालि के मुक्ति प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे मित्र के कष्ट को दूर करना हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए।
नारी सम्मान का सबसे बड़ा प्रमाण सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति ने दिया है। नारी सम्मान हेतु भगवान राम द्वारा किया गया बालि वध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। जीवन में क्रोध की स्थिति में मौन रहकर किसी भी निर्णय से बचना चाहिए।
सुंदरकांड की कथा के प्रारंभ में मानस मुक्ता ने सुंदर मानस सूत्र प्रदान करते हुए कहा कि बुजुर्गों का सम्मान सर्वकाल में कल्याणकारी होता है, क्योंकि श्रेष्ठ बुजुर्ग युवा शक्ति को हर परिस्थिति में प्रेरित और अनुशासित करते हैं।
इस अवसर पर सद्गुरु फाउंडेशन ट्रस्ट के चेयरमैन गणेश अग्रवाल, आस्था चैनल मुंबई के प्रमुख अरविंद जोशी, रोहित राजेश पोद्दार, अंशुल वर्मा, भारती बेन, भूमिका वर्मा, अनुसूया, कैलाश शर्मा, राजेश सिंह, विजय सिंह, सचिन, सौम्या सिंह, समाजसेविका सुधा दूबे, भजन गायिका सरला मीरचंदानी तथा हम रामजी के, रामजी हमारे हैं सेवा ट्रस्ट मुंबई के सहसचिव दिनेश प्रताप सिंह ने भी श्रोताओं के साथ कथा श्रवण का लाभ प्राप्त किया।
22 सितंबर से प्रतिदिन संध्या 5 से 7 बजे तक चल रही इस नौ दिवसीय रामकथा की पूर्णाहुति 1 अक्टूबर 2025 को होगी।
