● पंडित धीरज मिश्र

हिंदू पंचांग में कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है। यह मास अश्विन पूर्णिमा के अगले दिन से आरंभ होकर मार्गशीर्ष अमावस्या तक चलता है। देवताओं का प्रिय यह काल ‘दान, स्नान और ध्यान’ का समय माना जाता है। इस मास को न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि आत्मिक उन्नति के लिए भी विशेष महत्व प्राप्त है।
कार्तिक मास में भगवान विष्णु की विशेष आराधना की जाती है। उन्हें इस काल में ‘दामोदर’ रूप में पूजने का विधान है। भगवान विष्णु को तुलसी-दल चढ़ाना, दीपदान करना और हरिनाम जप करना अत्यंत शुभ माना गया है। तुलसी विवाह और देवउठनी एकादशी इस मास के प्रमुख पर्व हैं, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और पुनः सृष्टि संचालन में प्रवृत्त होते हैं।

स्नान, दान और दीपदान का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में ब्रह्ममुहूर्त में नदी, सरोवर या घर पर जल में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस काल में स्नान के साथ दीपदान करने का विशेष विधान है। दीपदान अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होने का प्रतीक है। ‘कार्तिके स्नानं दानं च, जपो होमः विशेषतः अर्थात कार्तिक में स्नान, दान, जप और होम करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
● कार्तिक मास की पावन कथाएं
कथाओं के अनुसार एक समय राजा पृथु ने अपने राज्य में धर्म और पुण्य के कार्यों का प्रचार किया। परंतु प्रजा उदासीन थी। तब भगवान विष्णु ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि जो मनुष्य कार्तिक मास में प्रातःकाल स्नान, दीपदान और तुलसी पूजन करता है, उसका जीवन पावन होता है और वह मेरे लोक को प्राप्त होता है। इस संदेश के बाद राजा ने पूरे राज्य में कार्तिक स्नान और व्रत का प्रचार किया। (पद्म पुराण)
कार्तिक मास की विशेषता है देवउठनी एकादशी, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं। कथा है कि तुलसी माता शंखचूड़ नामक असुर की पत्नी थीं। भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का नाश किया और तुलसी को शालिग्राम शिला के साथ विवाह का वरदान दिया। तब से देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह की परंपरा होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। त्रिपुरासुर ने तीन नगरों का निर्माण कर देवताओं को आतंकित किया था। शिव ने अपने बाण से उनका संहार किया और देवताओं को मुक्ति दिलाई। इस दिन को देव दीपावली भी कहते हैं, क्योंकि देवताओं ने विजय की खुशी में दीप जलाए। (शिव पुराण)
