● सूर्यकांत उपाध्याय

एक दिन बलराम सहित ग्वाल-बाल खेलते-खेलते यशोदा के पास पहुँचे और बोले- “माँ! कृष्ण ने आज मिट्टी खाई है।”
यह सुनते ही यशोदा ने कृष्ण के हाथ पकड़ लिए और डाँटते हुए बोलीं- “नटखट! तूने मिट्टी क्यों खाई? मिट्टी खाने से बीमार पड़ जाएगा।”
कृष्ण भयभीत होकर माँ की ओर देखने तक का साहस न कर सके।
यशोदा ने फिर कहा- “बलराम और सब ग्वाल कह रहे हैं कि तूने मिट्टी खाई है। अब बता, यह बात सच है?”
कृष्ण ने कहा- “माँ! मैंने मिट्टी नहीं खाई। ये सब झूठ बोल रहे हैं। यदि आपको विश्वास नहीं, तो आप स्वयं मेरा मुख देख लीजिए।”
यशोदा ने कहा- “अच्छा, तो तू अपना मुख खोल।” लीला करने के लिए उस छोटे से बालरूप धारी सर्वेश्वर श्रीकृष्ण ने अपना मुख खोल दिया।
जब यशोदा ने उनके मुख में झाँका तो उन्हें उसमें चराचर सहित समस्त ब्रह्मांड दिखाई देने लगा- द्वीप, पर्वत, समुद्र, दिशाएँ, वायु, तारा-मंडल, अग्नि, आकाश, जल, स्वर्गलोक और धरती- सब कुछ। यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं को, ब्रजभूमि को और उसी दृश्य में कृष्ण को अपनी गोद में बैठे देखा।
यशोदा चकित रह गईं- “यह क्या मैं स्वप्न देख रही हूँ? या देवताओं की कोई माया है? या मेरी बुद्धि भ्रमित हो गई है? अथवा मेरे इस बालक का ही कोई चमत्कार है?”
अंततः उन्होंने निश्चय किया-“निश्चय ही यह मेरे पुत्र का दिव्य चमत्कार है। वही ईश्वर हैं जो इस रूप में अवतरित हुए हैं।”
तब यशोदा ने उस सर्वशक्तिमान परब्रह्म श्रीकृष्ण की स्तुति की- जो चित्त, मन, कर्म, वचन और तर्क की सीमा से परे हैं, और समस्त ब्रह्मांड के आधार हैं।
अस्तुति करि न जाइ भय माना।
जगत पिता मैं सुत करि जाना॥
हरि जननी बहुबिधि समुझाई।
यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥
भावार्थ: (माता कहती हैं)- मैं स्तुति नहीं कर सकती, भय लगता है कि मैंने जगत्पिता को अपना पुत्र समझ लिया। श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा- “माँ! सुनो, यह बात कहीं किसी से कहना मत।”
जब कृष्ण ने देखा कि माता ने उनका तत्व पूर्णतः जान लिया है, तब उन्होंने अपनी योगमाया का विस्तार किया।
क्षणभर में यशोदा सब कुछ भूल गईं और पुनः अपने वात्सल्य में डूबकर कृष्ण को गोद में उठा लिया।
उनके हृदय में पूर्ववत् अपार स्नेह और प्रेम उमड़ पड़ा।
