● सूर्यकांत उपाध्याय

सेवानिवृत्त मेजर जनरल, जो चलने-फिरने में असमर्थ थे, उन्हें घर के एक कमरे में फर्श पर गद्दा बिछाकर रखा गया था। नौकर को कहा गया था कि उनकी पूरी देखभाल करना, हमें कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए। बेटों की अभी-अभी शादी हुई थी।
एक बेटा गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने फ्रांस चला गया, दूसरा लंदन और तीसरा पेरिस।
नौकर को सख्त हिदायत दी गई थी-“हम तीन महीने बाद लौटेंगे, तब तक पिताजी का पूरा ध्यान रखना, उन्हें समय पर खाना देना।”
नौकर बोला — “ठीक है सर!”
सब चले गए।
वो बूढ़े पिता घर के कमरे में अकेले सांस लेते रहे। न वो चल सकते थे, न किसी को आवाज लगा सकते थे।
नौकर ने घर को ताला लगाया और बाजार से सामान लेने चला गया। रास्ते में उसका एक्सीडेंट हो गया। लोगों ने उसे अस्पताल पहुँचाया, जहाँ वह कोमा में चला गया और कभी होश में नहीं आया।
नौकर के पास उस कमरे की चाबी थी, जिसमें मेजर जनरल साहब थे और बेटों ने घर की बाकी चाबियाँ अपने साथ ले ली थीं।
इसलिए वह कमरा ताला बंद रह गया।
अब वो वृद्ध मेजर जनरल उस कमरे में बंद थे। न उठ सकते थे, न किसी को बुला सकते थे, न फोन कर सकते थे।
तीन महीने बाद जब बेटे लौटे और जबरदस्ती ताला तोड़ा गया, तब जो दृश्य था, वह देखने योग्य नहीं था।
उनकी लाश की हालत देखकर हर किसी का दिल कांप गया।
यह घटना हमें सिखाती है कि हम कैसे अपनी सारी उम्र, अपनी मेहनत, अपना शरीर और अपना पैसा- सब कुछ अपने बच्चों के भविष्य के लिए लगा देते हैं
परंतु उन्हें मानसिक, भावनात्मक और नैतिक रूप से मजबूत बनाना भूल जाते हैं।
हमें भी सोचना चाहिए कि हम अपने बच्चों को कैसी शिक्षा और संस्कार दे रहे हैं। क्या हमारी हालत भी कहीं ऐसी तो नहीं होने जा रही?
