● सूर्यकांत उपाध्याय

एक स्त्री बस में चढ़ी। एक पुरुष के पास बैठते समय उसके बैग से अनजाने में उस पुरुष को चोट लग गई पर वह पुरुष चुप रहा, कुछ नहीं बोला।
जब वह व्यक्ति गुमसुम बैठा रहा, तो उस महिला ने पूछा,“मेरे बैग से मेरी लापरवाही के कारण आपको चोट लग गई, फिर आपने शिकायत क्यों नहीं की?”
पुरुष मुस्कुराया और शांत स्वर में बोला,“इतनी छोटी-सी बात पर नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं… क्योंकि हमारा साथ का सफर बहुत छोटा है। मैं अगले स्टॉप पर ही उतरने वाला हूँ।”
उसके शब्दों से महिला भावुक हो उठी। उसने माफी माँगी और मन ही मन सोचा “यात्रा बहुत छोटी है”, सचमुच यह शब्द सोने से लिखने योग्य है।
हमें यह समझना चाहिए कि इस संसार में हमारा समय बहुत सीमित है।
बेकार की बहसों, जलन, नफरत, असंतोष और नकारात्मक भावनाओं में उलझना वास्तव में हमारी ऊर्जा और जीवन की मूर्खतापूर्ण बर्बादी है।
● यदि किसी ने आपका दिल तोड़ा है?
शांत रहिए…
यात्रा बहुत छोटी है!
● किसी ने धोखा दिया, धमकाया या अपमान किया?
आराम से रहिए, तनाव मत लीजिए…
यात्रा बहुत छोटी है!
● किसी ने बेवजह आपका अपमान किया?
मुस्कुराइए, नज़रअंदाज़ कीजिए…
यात्रा बहुत छोटी है!
● किसी ने अप्रिय टिप्पणी की?
माफ कर दीजिए, नजरअंदाज कीजिए,
उन्हें अपनी दुआओं में रखिए और निःस्वार्थ प्रेम कीजिए…
यात्रा बहुत छोटी है!
समस्याएँ तभी बड़ी बनती हैं जब हम उन्हें मन में जगह देते हैं।
याद रखिए, हमारा साथ का सफर बहुत छोटा है।इस यात्रा की लंबाई किसी को नहीं पता…
कल किसने देखा है? यह सफर कब थम जाएगा, कौन जानता है?
तो आइए
अपने मित्रों, रिश्तेदारों और परिवार का सम्मान करें, दयालु, प्रेमपूर्ण और क्षमाशील बनें।
कृतज्ञता और आनंद से भरा जीवन जिएँ।
क्योंकि सचमुच-
यात्रा बहुत छोटी है!
