● क्या आप भी नींद में पैर हिलाते हैं?

नई दिल्ली ।
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (RLS) यानी ‘बेचैन पैर विकार’ एक तंत्रिका संबंधी रोग है, जिसे विलिस-एकबॉम डिजीज भी कहा जाता है। विश्व की लगभग दस प्रतिशत जनसंख्या इससे किसी न किसी रूप में प्रभावित है।
इस विकार के लक्षण खासकर शाम या रात में प्रकट होते हैं। मरीज को पैरों में जलन, झुनझुनी, दर्द या उन्हें लगातार पैर हिलाने की तीव्र इच्छा होती है। कुछ लोगों में लक्षण हल्के रहते हैं, तो कुछ में नींद तक प्रभावित हो जाती है।
जर्मनी के गॉटिंगेन विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्लॉडिया ट्रेंकवाल्डर के अनुसार यह रोग मुख्यतः दो कारणों से होता है एक आनुवांशिक और दूसरा पर्यावरणीय। अब तक इस विकार से जुड़ी 23 जीन की पहचान की जा चुकी है। जिन लोगों के परिवार में यह समस्या रही है, उनमें इसके होने की संभावना अधिक रहती है।
यूके के डॉक्टर जूलियन स्पिंक्स, जो स्वयं इस रोग से ग्रस्त हैं, बताते हैं कि RLS के दो प्रमुख प्रकार हैं।
पहला, जो युवावस्था में शुरू होकर जीवनभर बना रहता है।
दूसरा, जो अस्थायी होता है और लोहे की कमी, गर्भावस्था या किडनी की समस्या के दौरान उभरता है, किंतु समय के साथ कम हो जाता है।

ब्रिटेन की डॉक्टर जूली गोल्ड बताती हैं, “ऐसा लगता है जैसे किसी ने पैरों को कसकर बांध दिया हो। दर्द असह्य होता है और व्यक्ति किसी भी तरह राहत पाने की कोशिश करता है।”
इस बीमारी से राहत के लिए पर्याप्त नींद और तनावमुक्त जीवन उपयोगी है। ठंडे पानी से स्नान करना या पैरों की मालिश भी सहायक होती है। डॉक्टर प्रायः डोपामाइन स्तर बढ़ाने वाली दवाएं देते हैं, जिससे आराम मिलता है।
जूली बताती हैं कि छह से आठ सप्ताह के इलाज के बाद उन्हें नींद में सुधार और दर्द में कमी महसूस हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि लक्षण दिखाई देते ही डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि शुरुआती जांच से ही इसका सही उपचार संभव है।
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम घातक नहीं परंतु उपेक्षित रहा तो जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर असर डाल सकता है। समय पर पहचान और सही देखभाल से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
