
● मुंबई।
महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर अपनी परंपरागत पहचान संभावनाओं के खेल को साबित करती दिख रही है। स्थानीय निकाय चुनावों की आहट के साथ ही पुराने प्रतिद्वंद्वी और नये सहयोगी बनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। राज्य के सिंधुदुर्ग जिले के कणकवली में जो घटनाक्रम सामने आया है, उसने कोंकण की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है।
शिवसेना के दो गुट एक साथ?
राज्य राजनीति का सबसे चर्चित घटनाक्रम यह है कि शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और एकनाथ शिंदे गुट के नेता आपसी मतभेद भूलकर एक मंच पर आने की तैयारी में हैं। सूत्रों के अनुसार कणकवली में दोनों गुटों के बीच हाल ही में गुप्त बैठक हुई, जिसमें भाजपा और राणे परिवार के प्रभाव को चुनौती देने के लिए ‘शहर विकास आघाड़ी’ के गठन पर चर्चा हुई।
यह संकेत न केवल स्थानीय स्तर पर महत्वपूर्ण हैं बल्कि राज्य की व्यापक राजनीति में भी नई संभावनाओं के द्वार खोलते हैं। पिछले दो वर्षों से दोनों शिवसेनाएं एक-दूसरे के आमने-सामने खड़ी थीं, लेकिन भाजपा के वर्चस्व को रोकने के लिए एकजुटता की यह कोशिश रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
भाजपा अकेले मैदान में
भाजपा ने सिंधुदुर्ग में स्थानीय चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ने का ऐलान किया है। पार्टी ने कणकवली नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए समीर नलावडे का नाम आगे बढ़ाया है। जवाब में, ठाकरे और शिंदे गुटों की ओर से संदेश पारकर को मेयर पद के लिए संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। चर्चा यह भी है कि पारकर को शिंदे गुट का समर्थन मिल सकता है, जिससे भाजपा के लिए मुकाबला कठिन हो सकता है।
राणे परिवार के भीतर असंतोष?
सूत्र बताते हैं कि नीलेश राणे और नितेश राणे के बीच मतभेद खुलकर सामने आ सकते हैं। वहीं, नीलेश राणे और पूर्व विधायक वैभव नाईक के एक साथ आने की संभावना ने समीकरण और जटिल बना दिए हैं। दशकों से चली आ रही नाईक–राणे प्रतिद्वंद्विता अब नए गठबंधनों के कारण अप्रत्याशित दिशा ले सकती है।
संभावनाओं से भरा चुनावी परिदृश्य
कणकवली का आगामी नगर परिषद चुनाव अब सिर्फ स्थानीय नहीं बल्कि राज्य की राजनीति का संकेतक बनता जा रहा है। ठाकरे–शिंदे गुट की नजदीकी, भाजपा का अकेला रुख, और राणे परिवार की अंदरूनी हलचल, ये तीनों तत्व मिलकर आने वाले चुनाव को एक बहुआयामी सियासी प्रयोगशाला बना रहे हैं।
