■ सूर्यकांत उपाध्याय

कोई हाथी मरकर यमपुरी पहुँचा। यमराज ने हाथी से पूछा, “इतना मोटा-ताजा, बढ़िया हाथी मनुष्य लोक में पैदा होकर भी कंगला का कंगला कैसे आ गया? कुछ कमाई नहीं की तूने?”
हाथी बोला,”मैं क्या कमाई करता महाराज? मनुष्य तो मुझसे भी बड़ा है, फिर भी वह कंगला का कंगला चला आता है।”
यमराज ने पूछा, “मनुष्य बड़ा कैसे है?”
हाथी बोला, “महाराज, आपके पास तो मुर्दे मनुष्य आते हैं। किसी जिन्दा मनुष्य से सामना पड़े तो पता चले कि मनुष्य कैसा होता है।”
यमराज ने कहा, “ठीक है, अभी किसी जिन्दा मनुष्य को बुलवाकर देख लेते हैं।”
उन्होंने यमदूतों को आदेश दिया कि अवैधानिक रूप से किसी मनुष्य को उठा लाएँ।
यमदूत मनुष्यलोक पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि एक किसान रात्रि में अपने खलिहान में खटिया पर सो रहा है। यमदूतों ने खटिया को संकल्प से ऊपर उठा लिया और बिना प्राण निकाले, उसे सशरीर यमपुरी ले चले।
ऊपर की ठंडी हवा से किसान की नींद खुल गई। चारों ओर सन्नाटा था। उसने यमदूतों को पहचान लिया। वह समझ गया कि वे खटिया सहित मुझे ले जा रहे हैं। उसने सोचा,”अगर मैं कुछ बोलूँ और ‘तू-तू, मैं-मैं’ हो गई तो खटिया जरा-सी टेढ़ी कर देंगे, और मैं ऐसा गिरूँगा कि हड्डी-पसली का पता न चलेगा।”
उसने धीरे से जेब से कागज-कलम निकाली और कुछ लिखकर चुपचाप फिर लेट गया। खटिया यमपुरी पहुँच गई। खटिया लाने वाले यमदूतों को तुरंत कहीं और भेज दिया गया। तब युवक ने किसी दूसरे यमदूत के हाथों वह चिट्ठी यमराज तक भिजवा दी।
चिट्ठी में लिखा था,”पत्रवाहक मनुष्य को मैं यमपुरी का सर्वेसर्वा नियुक्त करता हूँ।”
नीचे लिखा था- “आदि नारायण भगवान विष्णु”।
चिट्ठी पढ़कर यमराज सकते में आ गए। भगवान का आदेश होने से उन्होंने युवक को सर्वेसर्वा के पद पर तिलक कर दिया।
अब कोई भी निर्णय उसी सर्वेसर्वा की आज्ञा से होता। जब भी कोई पापी आता, यमदूत पूछते, “महाराज, इसे किस नरक में भेजें?”
सर्वेसर्वा कहता, “वैकुण्ठ भेज दो।”
और उसे वैकुण्ठ भेज दिया जाता।
कुछ ही समय में वैकुण्ठ भर गया।
उधर भगवान विष्णु सोचने लगे,”क्या पृथ्वी पर कोई ऐसा ब्रह्मज्ञानी आया है जिसकी कृपा से सभी निष्पाप होकर वैकुण्ठ आ रहे हैं? लेकिन अगर कोई ब्रह्मज्ञानी होता तो उसका मुझसे सीधा संबंध अवश्य होता।”
भगवान ने यमपुरी में पुछवाया। यमराज ने अहवाल भेजा, “भगवन, वैकुण्ठ किसी संत की कृपा से नहीं, नये सर्वेसर्वा के आदेश से भर रहा है जिसे आपने भेजा है।”
भगवान चकित हुए, “मैंने तो ऐसा कोई आदमी नहीं भेजा।”
वे स्वयं यमपुरी पहुँचे। यमराज ने बताया कि सर्वेसर्वा वही युवक है, जिसे भगवान ने ही भेजा बताया गया था। आदेशपत्र देखकर विष्णुजी सोचने लगे, “नाम तो मेरा ही लिखा है पर पत्र मैंने नहीं लिखा।”
उन्होंने युवक को बुलाया, “मैंने कब हस्ताक्षर कर तुझे भेजा? तूने मेरे नाम के झूठे हस्ताक्षर किये?”
युवक शांत भाव से बोला, “भगवान, हाथ-पैर आपकी ही शक्ति से चलते हैं। जो कुछ मैंने किया, आपकी प्रेरणा से हुआ। प्रेरक तो आप ही हैं। यह वचन भी आपका ही है। यदि हस्ताक्षर मेरी ओर से झूठे हैं तो रामायण और गीता के आपके वचन भी असत्य ठहरेंगे। फिर लोग भक्ति कैसे करेंगे?”
भगवान मुस्कुराए,”ठीक है, तूने मेरा नाम लिख दिया, यह भी मेरी सत्ता से हुआ। लेकिन तूने सारे पापियों को वैकुण्ठ क्यों भेज दिया?”
युवक बोला,”भगवन, मैं तो अवैधानिक रूप से लाया गया हूँ। मेरी कुर्सी चार दिन की है। इसलिए अधिक से अधिक भलाई कर ली। अगर मैं ऐसा न करता तो आप भी यहाँ मिलने नहीं आते।”
भगवान बोले, “अच्छा, तूने पुण्य भी कमा लिया और मुझे पा भी लिया। अब मैं उन्हें वापस नरक भेजता हूँ।”
युवक बोला, “प्रभु, आपके दर्शन के बाद यदि वे फिर नरक भेज दिये गये तो आपके दर्शन की महिमा पर कौन विश्वास करेगा?”
भगवान ने कहा, “ठीक है, उन्हें नरक नहीं भेजूँगा। पर तू अब पृथ्वी पर जा।”
युवक बोला, “प्रभु, इतने लोगों को तारकर और आपके दर्शन करके भी यदि मैं फिर संसार की मजदूरी करूँ तो आपकी महिमा पर कलंक लगेगा।”
भगवान सोचने लगे, “यह तो तर्क में नारद से भी आगे है!”
उन्होंने कहा,”अच्छा, तू पृथ्वी नहीं जाना चाहता तो न सही। पर यह पद छोड। चल, मेरे साथ वैकुण्ठ में।”
युवक बोला,”मैं अकेला नहीं जाऊँगा। जिस हाथी के कारण मैं यहाँ आया, उसे भी वैकुण्ठ की आज्ञा दीजिए।”
भगवान ने कहा, “चल भाई हाथी, तू भी चल।”
हाथी ने सूँड उठाकर कहा, “जय रामजी की! देखा जिन्दा मनुष्य का कमाल!”
