- धर्मेन्द्र पाण्डेय

हम सबकी जिंदगी में एक सवाल बार-बार आता है, निर्णय लेते समय दिल की सुनें या दिमाग की? कई बार दिमाग तर्क देता है, आंकड़ों से रास्ता सुझाता है, लेकिन दिल की आवाज भीतर से आती है। जब हम अपने अंतर्मन की सुनते हैं, तो वह हमें हमारी सच्ची राह दिखाता है, जो हमें लंबे समय तक संतोष और सफलता की ओर ले जाती है।
सबसे पहले, जब हम दिल की मानकर कोई कदम उठाते हैं, तो हमारे भीतर एक अजीब सी शांति और संतोष का अनुभव होता है। वह निर्णय चाहे बाहर से छोटा लगे, लेकिन वह हमें भीतर से बड़ा बना देता है। इससे हमारे आत्मबल में वृद्धि होती है, और हम अधिक आत्मविश्वासी बनते हैं।
दूसरी बात, दिल की आवाज सुनना हमें बड़े फैसलों में भी स्पष्टता देता है। जब हम अपने अंदर की भावना से जुड़ते हैं, तो हमारे निर्णय बाहरी दबाव से मुक्त होते हैं। हम यह सोचने लगते हैं कि ‘क्या सही है’, न कि ‘लोग क्या कहेंगे’। इससे हमारे निर्णय न सिर्फ व्यक्तिगत रूप से संतुलित होते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणादायक साबित होते हैं।
तीसरी और बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल से लिया गया निर्णय रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देता है। जब हम दिल से काम करते हैं, तो हम सिर्फ काम नहीं करते, हम उसमें अपना समर्पण, अपनी भावना और अपना दृष्टिकोण भी जोड़ते हैं। इससे न सिर्फ कार्य की गुणवत्ता बेहतर होती है, बल्कि उसके परिणाम भी अनोखे और सार्थक होते हैं।
चौथी बात, जो दिल से किए गए निर्णयों को विशेष बनाती है, वह है उनका दीर्घकालीन प्रभाव। ऐसे निर्णय समय के साथ मजबूत होते जाते हैं। किसी कंपनी में यदि कोई व्यक्ति अपने जुनून से काम कर रहा हो, तो वह लंबे समय तक टिकेगा और लगातार बेहतरी की ओर बढ़ेगा। दिल की सुनकर किया गया काम एक तरह का उद्देश्यपूर्ण कार्य होता है, सिर्फ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए नहीं, बल्कि उसे अर्थ देने के लिए।
और सबसे अंत में, दिल से लिए गए निर्णयों पर पछतावा कम होता है। भले ही परिणाम हमेशा अनुकूल न हों, लेकिन इस बात का संतोष होता है कि निर्णय आत्मा की गहराई से लिया गया था। यही संतोष, भविष्य में नए निर्णय लेने का आत्मबल देता है।
इसलिए ज़रूरी है कि हम खुद से जुड़े रहें, अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनें और जब भी कोई बड़ा या छोटा निर्णय लेने का समय आए, दिल की राह को प्राथमिकता दें। यही रास्ता है सच्ची संतुष्टि, असली सफलता और स्थायी आनंद की ओर।