● सूर्यकांत उपाध्याय

तेज धूप में एक बैलगाड़ी धीरे-धीरे चल रही थी। उस पर भारी बोझ था और गाड़ीवान छाया में आराम कर रहा था। वहीं एक कुत्ता भी उसी दिशा में चल रहा था। धूप से बचने के लिए वह गाड़ी के नीचे छाया में चलने लगा।
कुछ समय बाद, उसे भ्रम हो गया कि वह ही गाड़ी को खींच रहा है, उसी पर सारा बोझ है। जब वह बैलों के पास पहुँच गया, एक बैल ने लात मारी और वह दूर जा गिरा। तब उसे समझ आया कि गाड़ी तो अब भी चल रही है, न वह बोझ खींच रहा था, न गाड़ी चला रहा था।
यही संसार है।
हम सोचते हैं कि सब कुछ हमारे ही बल पर चल रहा है पर वास्तव में प्रारब्ध ही संसाररूपी गाड़ी को चला रहा है।
हमें तो बस उसकी छाया में शांति से चलना है निस्पृह, निर्लिप्त।
कर्ताभाव छोड़ना ही जीवन की सच्ची समझ है।