
● धर्मेंद्र पांडेय
हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए यह वर्ष एक ऐतिहासिक उपहार लेकर आया है। काशी की प्रतिष्ठित संस्था नागरी प्रचारिणी सभा के अभिलेखागार से मुंशी प्रेमचंद की दो अत्यंत दुर्लभ और अब तक अप्रकाशित पांडुलिपियां सामने आई हैं ‘पंच परमेश्वर’ और ‘ईश्वरीय न्याय’। यह खोज न केवल हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है बल्कि भाषा-संवर्धन के क्षेत्र में नागरी प्रचारिणी सभा की भूमिका को और भी प्रामाणिक बनाती है।

इन दोनों पांडुलिपियों की खास बात यह है कि ये प्रेमचंद की सबसे प्रारंभिक हिंदी रचनाओं में से हैं। जहां ‘ईश्वरीय न्याय’ का मूल हस्तलिखित स्वरूप पूर्ण रूप से संरक्षित अवस्था में मिला है, वहीं ‘पंच परमेश्वर’ का अंश अधूरा है, लेकिन इसमें प्रेमचंद की लेखन-शैली का शुरुआती खाका साफ नजर आता है।
इन पांडुलिपियों पर आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के द्वारा किए गए 200 से अधिक संपादकीय संशोधन भी अंकित हैं। ये पांडुलिपियां न केवल प्रेमचंद के लेखन विकास का प्रमाण हैं बल्कि द्विवेदी युगीन संपादन दृष्टिकोण को भी उजागर करती हैं। उदाहरणस्वरूप, ‘पंच परमेश्वर’ मूलतः ‘पंच भगवान’ नाम से लिखी गई थी, जिसे द्विवेदीजी ने न केवल शीर्षक में बल्कि भाषा के कई स्तरों पर संशोधित कर नया रूप प्रदान किया।
नागरी प्रचारिणी सभा, जिसकी स्थापना 1893 में हुई थी, वर्षों से हिंदी पांडुलिपियों, पत्रिकाओं और दुर्लभ ग्रंथों का संरक्षण करती आई है। आज संस्था के पास 20,000 से अधिक पांडुलिपियां, 50,000 पत्रिकाएं और 1.25 लाख ग्रंथों का विशाल भंडार है। प्रेमचंद के प्रति संस्था की विशेष आत्मीयता रही है।

सभा ने घोषणा की है कि इन दोनों पांडुलिपियों को शोधपरक क्रिटिकल संस्करण के रूप में प्रकाशित किया जाएगा, जिससे साहित्यिक जगत को न केवल प्रेमचंद के आरंभिक लेखन स्वरूप की झलक मिलेगी बल्कि हिंदी गद्य के विकास की प्रक्रिया को भी गहराई से समझा जा सकेगा।
इस खोज ने हिंदी साहित्य के इतिहास में एक नयी रोशनी भर दी है। प्रेमचंद की लेखनी आज भी उतनी ही जीवंत है और यह खोज इस बात की गवाही देती है कि साहित्यिक विरासत कभी खोती नहीं, बस उसे ढूंढने की आवश्यकता होती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)