● सूर्यकांत उपाध्याय

जयपुर के पास एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में हर वर्ष भव्य मेला लगता है। वहीं एक मिठाईवाले की दुकान पर एक साधु पहुँचे और हाथ में चवन्नी रखते हुए बोले –
“पाव भर पेड़े दे दो।”
हलवाई हँसते हुए बोला –
“चार आने में पाव भर पेड़े? नहीं मिलते महाराज!”
साधु ने विनम्रता से कहा –
“हमारे राम के पास तो यही है। दे दो, भगवान भला करेंगे।”
हलवाई ने न केवल मना किया बल्कि चवन्नी भी गड्ढे में फेंक दी और अपमानित करते हुए बोला –
“जाओ, तुम भी गड्ढे में गिरो!”
साधु शिला पर जाकर मौन बैठ गए।
रात में हलवाई ने देखा कि चार बंदर अचानक उसकी दुकान पर आ धमके। एक थैली उठाकर पेड़ पर चढ़ गया, दूसरा मिठाई लूटने लगा, तीसरा बंदर वही पेड़े साधु की गोद में रख गया और चौथा शोर मचाता रहा।
हलवाई घबरा गया पर बंदर ने पैसे नहीं लौटाए। तब किसी ने सलाह दी –
“जिस साधु का अपमान किया, उसी से क्षमा माँगो।”
हलवाई साधु के चरणों में गिरकर बोला –
“महाराज! गलती हो गई।”
साधु ने शांत भाव से उत्तर दिया –
“मुझसे नहीं, हनुमान जी से माफी माँग।”
हलवाई ने बचे हुए पेड़े लेकर मंदिर में भोग लगाया, प्रार्थना की –
“जय जय हनुमान गोसाईं… मेरी रक्षा करो…”
वापस आकर पाव भर पेड़े साधु को चढ़ाए। साधु बोले “और मेरी चवन्नी?”
“गड्ढे में है।” दुकानदार बोला।
साधु ने कहा, “तो अब तू ही गड्ढे में जाकर ला।”
हलवाई ने चवन्नी निकाली, धोकर चरणों में रख दी।
साधु ने प्रार्थना की –
“प्रभो! यह आपका ही बालक है। दया करो।”
क्षण भर में ही एक बंदर ने थैली नीचे फेंक दी और सारे बंदर वहां से चले गए।