● सूर्यकांत उपाध्याय

एक राजा का जन्मदिन था। सुबह-सुबह जब वह टहलने निकला तो उसने मन में निश्चय किया कि आज वह रास्ते में मिलने वाले सबसे पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश और संतुष्ट करेगा।
चलते-चलते उसे सबसे पहले एक भिखारी मिला। भिखारी ने राजा से भीख मांगी तो राजा ने उसकी ओर एक तांबे का सिक्का उछाल दिया। सिक्का भिखारी के हाथ से छूटकर नाली में गिर गया। वह झट से नाली में हाथ डालकर सिक्का खोजने लगा।
राजा ने उसे बुलाया और दूसरा तांबे का सिक्का दे दिया। भिखारी ने खुशी से वह सिक्का जेब में रखा और फिर नाली में गिरे हुए पहले सिक्के को ढूंढ़ने लगा।
राजा को लगा कि यह व्यक्ति सचमुच बहुत गरीब है। उसने फिर उसे बुलाया और चांदी का एक सिक्का दे दिया। भिखारी ने जय-जयकार करते हुए वह सिक्का भी रख लिया लेकिन उसके बाद भी वह नाली में तांबे का सिक्का खोजने लौट गया।
राजा ने सोचा, ‘शायद इसे और चाहिए।’ उसने भिखारी को फिर बुलाया और इस बार सोने का सिक्का दिया। भिखारी खुशी से उछल पड़ा पर तुरंत वापस जाकर नाली में हाथ डालने लगा।
यह देखकर राजा को बहुत बुरा लगा। उसे अपना वचन याद आया कि वह पहले मिलने वाले व्यक्ति को पूर्ण संतुष्ट करेगा। वह बोला,
‘भाई! मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट दे देता हूं। अब तो खुश और संतुष्ट हो जाओ।’
भिखारी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, ‘महाराज! मैं तो तभी संतुष्ट हो पाऊंगा, जब नाली में गिरा हुआ तांबे का सिक्का भी मुझे मिल जाएगा।’
सीख-
मित्रों, हमारा हाल भी उस भिखारी जैसा है। परमात्मा ने हमें मानव जीवन का अनमोल खजाना दिया है ज्ञान, प्रेम, करुणा और सत्य की पहचान। लेकिन हम उसे भूलकर, संसार की नाली में गिरे ‘तांबे के सिक्कों’ की तलाश में दिन-रात अपना जीवन गंवाते जा रहे हैं।
यदि हम इस अनमोल मानव जीवन का सही उपयोग करें, तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। अन्यथा, हम भी उस भिखारी की तरह जीवन भर छोटी-छोटी इच्छाओं में उलझे रहेंगे और अंत तक हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा।