● सूर्यकांत उपाध्याय

एक पिता ने अपनी बेटी की सगाई की। लड़का बहुत अच्छे घर से था तो पिता भी बहुत खुश हुए। लड़के और उसके माता-पिता का स्वभाव भी बहुत अच्छा था। इससे पिता के सिर से बड़ा बोझ उतर गया।
एक दिन, शादी से पहले, लड़के वालों ने लड़की के पिता को खाने पर बुलाया। पिता की तबीयत ठीक नहीं थी, फिर भी वह ‘ना’ नहीं कह सके। लड़के वालों ने बड़े ही आदर-सत्कार से उनका स्वागत किया, आवभगत की।
फिर लड़की के पिता के लिए चाय लाई गई। शुगर की वजह से लड़की के पिता को चीनी वाली चाय से दूर रहने की सलाह दी गई थी। लेकिन लड़की के होने वाले ससुराल में थे तो चुपचाप चाय हाथ में ले ली।
चाय की पहली चुस्की लेते ही वे चौंक गए क्योंकि चाय में चीनी बिल्कुल नहीं थी और उसमें इलायची भी डाली हुई थी।
वे सोच में पड़ गए कि क्या ये लोग भी हमारी जैसी ही चाय पीते हैं?
दोपहर का खाना भी बिल्कुल उनके घर जैसा था। दोपहर में आराम करने के लिए दो तकिये और वही पतली चादर दी गई जो उन्हें पसंद थी। उठते ही सौंफ का पानी पीने को दिया गया।
वहां से विदा लेते समय उनसे रहा नहीं गया, तो वे पूछ ही बैठे, ‘मुझे क्या खाना है, क्या पीना है, मेरी सेहत के लिए क्या अच्छा है, ये आपको इतनी परफेक्टली कैसे पता है?’
तो बेटी की सास ने धीरे से कहा, ‘कल रात को ही आपकी बेटी का फोन आया था।’ उसने कहा कि मेरे पापा स्वभाव से बड़े सरल हैं, बोलेंगे कुछ नहीं।
प्लीज़, अगर हो सके तो आप उनका इतना सा ध्यान जरूर रखिएगा।’
पिता की आंखों में पानी आ गया और वे रुमाल से पोंछने लगे।
लड़की के पिता जब अपने घर पहुंचे तो घर के हाल में लगी अपनी स्वर्गवासी मां की फोटो से हार निकाल दिया।
पत्नी ने पूछा, ‘ये क्या कर रहे हो?’
लड़की के पिता बोले, ‘मेरा ध्यान रखने वाली मेरी मां इस घर से कहीं नहीं गई है बल्कि वो तो मेरी बेटी के रूप में इसी घर में रहती है।’
और फिर पिता की आंखों से आंसू छलक गए और वे फफक-फफक कर रो पड़े।
दुनिया में सब कहते हैं ना कि बेटी एक दिन इस घर को छोड़कर चली जाएगी। मगर मैं दुनिया के सभी मां-बाप से कहना चाहता हूं कि बेटी कभी भी अपने मां-बाप के घर से नहीं जाती बल्कि वह हमेशा उनके दिल में रहती है।
गर्व से कहो, ‘मैं एक बेटी का पिता हूं।’