●सूर्यकांत उपाध्याय

एक समय की बात है। एक नगर में राजेश नामक एक कंजूस व्यक्ति रहता था। उसकी कंजूसी सर्वप्रसिद्ध थी। वह खाने-पहनने तक में भी कंजूसी करता था।
एक बार उसके घर से एक कटोरी गुम हो गई। उसी कटोरी के दुःख में राजेश ने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। परिवार के सभी सदस्य उसकी कंजूसी से दुखी थे। मोहल्ले में उसकी कोई इज्ज़त नहीं थी क्योंकि वह किसी भी सामाजिक कार्य में दान नहीं करता था।
एक बार राजेश के पड़ोस में धार्मिक कथा का आयोजन हुआ। वेदमंत्रों और उपनिषदों पर आधारित कथा चल रही थी। राजेश को भी सद्बुद्धि आई तो वह कथा सुनने के लिए सत्संग में पहुँच गया।
वेदों के वैज्ञानिक सिद्धांत सुनकर उसे भी रस आने लगा क्योंकि वैदिक सिद्धांत व्यावहारिक और वास्तविकता पर आधारित होते हैं तथा सत्य-असत्य का बोध कराते हैं। धीरे-धीरे कंजूस को कथा में और अधिक रुचि आने लगी। भले ही उसकी कोई कदर न करता हो पर वह प्रतिदिन कथा में आने लगा।
कथा समाप्त होते ही वह सबसे पहले अपनी शंकाएँ पूछता। इस तरह उसकी रुचि बढ़ती गई। कथा के अंत में भंडारे का आयोजन होना था। कथावाचक ने सबको सूचना दी कि कल भंडारा होगा। इसके लिए जो श्रद्धा से कुछ भी लाना या दान करना चाहे, ला सकता है।
सभी लोग अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार कुछ न कुछ लाए। कंजूस के हृदय में भी श्रद्धा जागी। वह एक गठरी बाँधकर सिर पर रखकर ले आया। भीड़ अधिक थी। कंजूस को देखकर कोई भी उसे आगे नहीं बढ़ने दे रहा था। सब अपने-अपने दान देकर यथास्थान बैठ गए।
अब कंजूस की बारी आई। लोग उसे देखते ही हँसने लगे क्योंकि सभी जानते थे कि यह महाकंजूस है। उसकी गठरी देखकर लोग तरह-तरह के अनुमान लगाने लगे और हँसते रहे लेकिन कंजूस को इसकी परवाह नहीं थी।
कंजूस ने आगे बढ़कर विद्वान ब्राह्मण को प्रणाम किया और जो गठरी लाया था उसे उनके चरणों में रख दिया। जब गठरी खोली गई तो सभी लोगों की आँखें फटी की फटी रह गईं। उसमें कंजूस के जीवन की सारी अमूल्य संपत्ति गहने, जेवर, हीरे-जवाहरात आदि थे। उसने सब कुछ दान कर दिया।
फिर उठकर वह यथास्थान जाने लगा, तो विद्वान ने कहा, ‘महाराज! आप वहाँ नहीं, यहीं आगे बैठिए।’
कंजूस बोला, ‘पंडित जी! यह मेरा आदर नहीं, बल्कि मेरे धन का आदर है। अन्यथा मैं तो प्रतिदिन आता था और यही पर बैठता था, तब मुझे कोई नहीं पूछता था।’
ब्राह्मण ने कहा, ‘नहीं, महाराज! यह आपके धन का आदर नहीं बल्कि आपके महान त्याग का आदर है। यह धन थोड़ी देर पहले तक आपके पास था, तब आपको इतना सम्मान नहीं मिला। आज जब आपने त्याग किया है, तभी आप एक सम्मानित व्यक्ति बन गए हैं।’