● बोले, स्वेच्छा से सीखें मराठी
● हिंदुत्व के उत्कर्ष में महाराष्ट्र का योगदान
मुंबई। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने शुक्रवार को मराठी में प्रवचन सुनाकर सबको चकित कर दिया। यहां मुंबई में अपने चातुर्मास्य व्रत महामहोत्सव के दौरान शुक्रवार की सुबह श्रद्धालुओं को उन्होंने श्रीमद् भगवद् गीता के प्रथम अध्याय का अर्थ शुद्ध मराठी में सुनाया। उन्होंने जैसे ही अपने प्रवचन का पहला मराठी वाक्य पूरा किया श्रद्धालुओं ने तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट से प्रसन्नता जताई।

उल्लेखनीय है कि मुंबई में अपने चातुर्मास्य महोत्सव के आरंभ में ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि वे मुंबई में मराठी सीखना चाहेंगे। यहां मुंबई में हिंदी-मराठी भाषा विवाद पर उन्होंने कहा था कि भाषा किसी पर जबरन नहीं थोपनी चाहिए। लेकिन स्थानीय भाषा का सम्मान जरुरी है, वह स्वेच्छा से सीख लेना चाहिए। मुंबई में उन्होंने अपने लिए दो मराठी शिक्षक रखे हैं और पिछले डेढ़ महीने से वे मराठी सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में संत नामदेव, ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ, स्वामी समर्थ जैसे बड़े संतों ने कई ग्रंथ लिखे हैं। महाराष्ट्र में ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई, छत्रपति शिवाजी महाराज, संत गाडगे महाराज, बाबासाहेब अंबेडकर जैसे लोगों के बारे में काफी इतिहास लिखा गया है। महाराष्ट्र की शौर्य गाथा, मराठी धार्मिक ग्रंथों और यहां के इतिहास को पढ़ने के लिए मराठी सीखना आवश्यक है।

महाराजश्री ने कहा कि देश में हिंदुत्व के ध्वज को ऊंचाई पर रखने में महाराष्ट्र का बहुत बड़ा योगदान है। यह तपस्वी संतों और शूरवीरों की भूमि है। सनातन संस्कृति को सहेजने में महाराष्ट्र का बड़ा योगदान है। यहां धार्मिकता हमेशा उत्कर्ष पर रही है। उन्होंने कहा कि मुंबई में भगवान सिद्धिविनायक और महालक्ष्मी के आशीर्वाद के साथ-साथ सरस्वती की भी बहुत कृपा है। तभी तो मुंबई में सबसे ज्यादा धार्मिक-आध्यात्मिक आयोजन होते हैं। महाराजश्री का चातुर्मास्य व्रत महामहोत्सव मुंबई में 7 सितंबर तक लगातार जारी है। आम श्रद्धालु प्रतिदिन रुद्राभिषेक, पूजन, महायज्ञ, प्रवचन, आशीर्वाद के साथ-साथ अनेक धार्मिक-आध्यात्मिक कार्यक्रमों में शामिल होकर पुण्यलाभ अर्जित कर सकते हैं।