● सकारात्मक सोच ही मेरी किताब की आत्मा है : हरीश पाठक

मुंबई।
‘आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहाँ कुंठा है, ईर्ष्या है, दगाबाजी है, मित्रद्रोह है। चुनौतियों और परेशानियों के इस दौर में हरीश पाठक की किताब ‘मेरा आकाश, मेरे धूमकेतु’ (प्रभात प्रकाशन) एक सकारात्मक किताब है। इसमें कहीं भी नकारात्मकता नहीं है और यही इस किताब की खूबसूरती है।’ यह विचार प्रख्यात कथाकार एवं शिक्षाविद रवींद्र कात्यायन ने चित्रनगरी संवाद मंच द्वारा कथाकार एवं पत्रकार हरीश पाठक के संस्मरणों की किताब ‘मेरा आकाश, मेरे धूमकेतु’ पर आयोजित चर्चा में व्यक्त किए।

लेखक एवं पत्रकार विवेक अग्रवाल ने कहा, ‘किस्सागो शैली में लिखे गए ये 49 संस्मरण यादों के वे दस्तावेज़ हैं, जिनकी जबरदस्त पठनीयता बार-बार पढ़ने की मांग करती है। संस्मरण विधा का यह अकेला उदाहरण है जिसमें नकारात्मकता का अंश मात्र भी नहीं है।’
मनोगत के अंतर्गत हरीश पाठक ने कहा, ‘मेरी सोच सिर्फ और सिर्फ सकारात्मक ही रही है। वही सकारात्मकता इस किताब की आत्मा है।’
डॉ. रीता दास राम ने किताब की जादुई भाषा की सराहना की। प्रियम्वदा रस्तोगी ने ‘वनमाला : कतरा-कतरा आसमान’ का अंश पाठ किया।

कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन देवमणि पांडेय ने किया। इस अवसर पर दिल्ली से आईं कथाकार नीलिमा शर्मा, विजय पंडित, राजेंद्र शर्मा, प्रदीप गुप्ता, मीनू मदान, रीमा राय सिंह, प्रमिला शर्मा, कनकलता तिवारी, कमलेश पाठक, मधुबाला शुक्ल, कमर हजीपुरी, शिवदत्त शर्मा, द्विजेंद्र तिवारी सहित कला, साहित्य और संस्कृति के अनेक नामचीन रचनाधर्मी उपस्थित थे।
चर्चा सत्र के बाद काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।