इस साल मानसून ने सबको चौंकाते हुए अपने तय समय से पूरे 8 दिन पहले दस्तक दी है। अनुमान है कि जुलाई तक यह पूरे भारत को ढक लेगा। इससे पहले 2009 में ऐसा हुआ था जब मानसून इतनी जल्दी देशभर में फैल गया था। खासतौर पर उत्तर भारत में, जहां मानसून सामान्यतः 20 से 25 जून के बीच पहुंचता है, वहां इसकी जल्दबाज़ी एक विशेष संकेत मानी जा रही है।

बता दें कि जब बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में तेज हवाओं के साथ बारिश से लदे बादल जमा होते हैं तो ये दो दिशाओं में बंट जाते हैं। एक हिस्सा अरब सागर की ओर बढ़ते हुए गुजरात, मुंबई और राजस्थान को पार करता है और दूसरा हिस्सा बंगाल की खाड़ी से होते हुए पश्चिम बंगाल और बिहार के रास्ते हिमालय से टकराता है। फिर गंगा के मैदानी इलाकों की ओर बढ़ता है।
इसी प्रणाली के जरिए मानसून देश में प्रवेश करता है।
अल नीनो और ला नीना का महत्व
अल नीनो की स्थिति तब बनती है जब प्रशांत महासागर का तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है। इसका असर यह होता है कि जिन क्षेत्रों में आमतौर पर अधिक वर्षा होती है, वहां बारिश कम हो जाती है, और जहां कम होती है, वहां अपेक्षाकृत ज्यादा। यह स्थिति औसतन हर 10 साल में दो बार देखी जाती है।
इसके विपरीत, ला नीना में समुद्री जल तेजी से ठंडा हो जाता है। इसका सकारात्मक प्रभाव यह है कि इससे बादल बनते हैं, और अच्छी बारिश होती है। इसका असर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के मौसम पर पड़ता है।
मानसून शब्द कहां से आया?
‘मानसून’ शब्द भले ही हिंदी में खूब इस्तेमाल होता है, लेकिन इसका सफर अरबी शब्द ‘मौसिम’ से शुरू होकर पुर्तगाली ‘मॉन्साओ’, फिर अंग्रेज़ी ‘मॉनसून’ होते हुए हिंदी तक पहुंचा है। यह शब्द उर्दू समेत कई भारतीय भाषाओं में भी अपनाया गया है। इसका संबंध उन मौसमी हवाओं से है जिनकी दिशा ऋतुओं के साथ बदलती रहती है।