● संघ प्रमुख बोले, भारत में आज जितना बुरा दिखता है, उससे 40 गुना ज्यादा सब अच्छा है
● समाज में सकारात्मक मूल्यों का प्रसार और राष्ट्रहित में कार्य करना है
● मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भारत का मूल्यांकन गलत

नई दिल्ली।
‘कभी एयरपोर्ट पर प्रतीक्षा में बैठते हैं और टीवी चलता रहता है तो उसमें न्यूज़ चैनल पर टॉप 100 वाली खबरों में घर जल गया, वहां बच्चा मर गया, यहां एक्सीडेंट हो गया, इसने उसको मारा, उसने इसको मारा, इस तरह की न्यूज़ चलती है। हमें लगता है कि सबकुछ बहुत खराब हो रहा है। यद्यपि खराब तो हो रहा है। इस पर चिंता करने की जरूरत भी है परंतु भारत में आज जितना बुरा दिखता है, उसे 40 गुना ज्यादा समाज में सब अच्छा है। कोई अगर मीडिया रिपोर्ट के आधार पर भारत का मूल्यांकन करेगा तो वह गलत ही होगा।’ उक्त उद्गार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघसंचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने व्यक्त किए। वे नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित संघ के ‘शताब्दी समारोह’ को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपने संबोधन में समाज प्रबोधन, शिक्षा, चरित्र निर्माण, राजनीति सहित कई विषयों पर अपनी बात रखी और सकारात्मकता पर जोर दिया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हर परिवार को अपनी भाषा, परंपरा, वेशभूषा और संस्कृति को संजोकर रखना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि तकनीक और आधुनिकता शिक्षा की शत्रु नहीं बल्कि सहयोगी हैं। भागवत ने कहा कि संघ का लक्ष्य संगठन विस्तार नहीं बल्कि समाज में सकारात्मक मूल्यों का प्रसार और राष्ट्रहित में कार्य करना है।
भागवत ने समझाया कि शिक्षा केवल जानकारी तक सीमित नहीं होती बल्कि उसका उद्देश्य व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में पंचकोसीय शिक्षा का जो प्रावधान जोड़ा गया है, वह सही दिशा में उठाया गया कदम है।

‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ शीर्षक से देशभर में आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में गुरुवार को उन्होंने परिवार और समाज को मजबूत करने के उपाय भी बताए। उन्होंने कहा कि एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में सम्मिलित होना सामाजिक एकता, प्रेम और करुणा को बढ़ाने का सबसे सरल उपाय है।
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि किसी विवाद या भड़काऊ परिस्थिति में कानून को हाथ में लेने के बजाय विधि-व्यवस्था पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने विविधताओं से भरे भारतीय समाज में सौहार्द और भाईचारे को बनाए रखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होने चाहिए।’

सरकार और संघ के संबंधों पर उठते सवालों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा, ‘क्या आरएसएस सब कुछ तय करता है? यह पूरी तरह गलत है। संघ केवल परामर्श देता है, निर्णय लेना सरकार का कार्य है। अगर हम निर्णय लेते तो क्या इसमें इतना समय लगता?’