
पिछले कुछ सालों में प्रीमियम और लग्जरी घरों की सप्लाई तेजी से बढ़ी है, लेकिन मिडिल क्लास के लिए किफायती घरों की कमी हो गई है, जिसका खामियाजा सीधे उन्हीं को भुगतना पड़ रहा है।
भारत का हाउसिंग मार्केट इस समय ऐसे दौर से गुजर रहा है, जो भविष्य की सामाजिक-आर्थिक संरचना पर गहरा असर डाल सकता है। 2025 के पहले छह महीनों के आंकड़े देखें तो एक ओर प्रीमियम और लग्जरी हाउसिंग सेगमेंट में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई है, वहीं दूसरी ओर अफोर्डेबल हाउसिंग का हिस्सा लगातार सिकुड़ता जा रहा है। यह विरोधाभास केवल आँकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि मिडिल क्लास के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
भारत के बड़े शहरों में एक नौकरीपेशा दंपति के लिए अपना घर खरीदना अब बड़ी चुनौती बन गया है, भले ही दोनों की आय अच्छी हो। दिक्कत सैलरी की नहीं, बल्कि घरों की उपलब्धता और सप्लाई में भारी असमानता की है। भारत में लाखों घर खाली पड़े हैं, फिर भी किफायती और रहने लायक घरों की भारी कमी है।
आज भारत के शहरों में डेवलपर्स ज्यादा मुनाफे के लिए लग्जरी घर बना रहे हैं, जबकि असल जरूरत मध्यम वर्ग के छोटे और किफायती घरों की है। जमीन की राजनीति, काले धन का प्रवाह और सरकारी नियमों की लापरवाही इस समस्या को और गंभीर बना रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मिडिल क्लास का अपना घर खरीदने का सपना अब बस सपना बनकर रह जाएगा?
2025 की पहली छमाही में एक करोड़ से ऊपर कीमत वाले घरों की बिक्री ने रेजिडेंशियल सेल्स का 62 प्रतिशत हिस्सा हासिल कर लिया। यह 2024 की तुलना में बड़ा उछाल है, जब यह हिस्सा 51 प्रतिशत था। प्रीमियम सेगमेंट (1.5 से 3 करोड़) में 22 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई, लग्जरी सेगमेंट (3 से 5 करोड़) में 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और अल्ट्रा-लग्जरी (5 करोड़ से अधिक) घरों की बिक्री भी 8 प्रतिशत बढ़ी। दूसरी ओर, अफोर्डेबल हाउसिंग (एक करोड़ से कम) की सप्लाई में 36 प्रतिशत की गिरावट आई।

आज भारत में लगभग 1.1 करोड़ घर खाली पड़े हैं, लेकिन 1.9 करोड़ घरों की जरूरत है। यह कमी ज्यादातर किफायती घरों के सेगमेंट में है। 2022 में जहां अफोर्डेबल हाउसिंग की सप्लाई 3 लाख यूनिट थी, वहीं 2024 में यह घटकर केवल 2 लाख यूनिट रह गई। चौंकाने वाली बात यह है कि आज भी एक करोड़ से ज्यादा फ्लैट्स खरीदारों का इंतजार कर रहे हैं।
शहरवार आंकड़े देखें तो दिल्ली-एनसीआर में अफोर्डेबल हाउसिंग सप्लाई में 45 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है। मुंबई में यह गिरावट 60 प्रतिशत और हैदराबाद में 69 प्रतिशत तक पहुंच गई। यह तब हो रहा है जब मिडिल क्लास की जरूरतें बढ़ रही हैं, लेकिन डेवलपर्स अधिक मुनाफे के लिए प्रीमियम और लग्जरी हाउसिंग की ओर झुक रहे हैं।
यहाँ एक गहरी संरचनात्मक समस्या दिख रही है। भारत का हाउसिंग मार्केट धीरे-धीरे उस दिशा में बढ़ रहा है जहाँ अमीरों और उच्च आय वर्ग के लिए पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं, लेकिन मिडिल और लोअर मिडिल क्लास के लिए विकल्प तेजी से घटते जा रहे हैं। यह प्रवृत्ति केवल अर्थशास्त्र नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी गंभीर है।
अगर अफोर्डेबल हाउसिंग योजनाबद्ध तरीके से खत्म होती रही तो हाउसिंग मार्केट दो ध्रुवों में बंट जाएगा, एक ओर बेहद महंगे घर और दूसरी ओर बहुत सीमित सस्ते घर। बीच का सेगमेंट धीरे-धीरे गायब हो जाएगा। यह असमानता लंबे समय में सामाजिक संतुलन को बिगाड़ सकती है।
सरकार को चाहिए कि वह इस पर तुरंत ठोस कदम उठाए। जमीन से जुड़ी राजनीति, FSI की सीमाएं, निवेशकों की सट्टेबाजी और काले धन का लेन-देन मिलकर इस बाजार को बिगाड़ रहे हैं और इनके बीच सबसे ज्यादा पिस रहा है मिडिल क्लास।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। उक्त लेख में इनके निजी विचार हैं।)